बहरहाल-टूटा पुल, किसका दोष ?

विक्रम बिष्ट

लगभग छह दशक पुराना रानीपोखरी पुल बीते शुक्रवार को क्षतिग्रस्त हो गया। राहत की बात यह है कि कोई जनहानि नहीं हुई। जानकारों के अनुसार पुलिस को यातायात के लिए तैयार करने में डेढ़-दो महीने का समय लग सकता है। माना जा रहा है कि नदी में अनियंत्रित खनन इसकी वजह हो सकती है।
अवैध और अत्यधिक खनन पहाड़ पर कहर बरपा रहा है। निर्माण कार्यों में ज्यादा कमाई के लिए भारी मशीनों और विस्फोटकों के प्रयोग से पहाड़ियां जर्जर हो रही हैं। बारहमासी ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग की दशा सामने है।
इधर उत्तराखण्ड में राजनीति, ठेकेदारी और इंजीनियरिंग सेवा का गठजोड़ लोकहित पर भारी साबित हो रहा है। ई-टेंडरिंग की व्यवस्था वास्तव में मखौल बन गई है। सत्ता के नज़दीक ठेकेदार को सबकुछ पता होता है।
रानी पोखरी पुल की बेचारगी देखिए कि इस पर राजनीति नहीं हो पा रही है। ना श्रेय लेने की ना आरोप लगाने की। वैसे चालू राजनीति में गुंजाइश तो है। पुल जब बना तब नेहरू प्रधानमंत्री थे। उनको दोष दिया जा सकता है। दूसरा पक्ष ठीक उलटा!

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