तीन टाइप के अफसर और अपना अनुभव-एस एम बिजल्वाण।

मैंने अपने 38 बर्ष की सरकारी सेवाओ के दौरान दर्जनो व्यूरोक्रेटो के साथ कार्य किया।मैंने तीन किस्म के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी देखे।
पहला नम्बर -ऐसे कि वे जनसेवा को अपना लक्ष्य बना कर चलते,अधिकारी कर्मचारियो को टीम भावना से कार्य करने को प्रेरित करते है,और स्वयं भी 24×7 जनता के लिये उपलब्ध रहते है,वे स्वयं भी नियम का पालन करते हैंऔर अपने अधीनस्थ कर्मचारी अधिकारियो से भी अपेक्षा करते है,लापरवाह कर्मचारियो को सुधरने का मौका देने के साथ ,न सुधरने पर कठोर कार्रवाई भी करते हैं।सरकारी सुविधाओ का वेजा स्तेमाल नही करते।वे अपने कार्यो से ही जनप्रिय होते हैं ,जिन्हें जनता से अगाध सम्मान मिलता है।
दूसरा नम्बर-ऐसे जो वर्गवाद, जातिवाद,SC/ST के मोह में हमेशा उलझे रहते है,और अपने अधीनस्थ कर्मचारियो के हर कार्य में मीनमेख निकालते रहते हैं,उन्हे प्रताडित करने का बाहना ढूढते रहे है,चाहे आप अच्छा कार्य करे या नहीं,वे जनता के साथ भी व्वहारिक रूप से भी हमेशा जातिवाद के फोबिया से बाहर नहीं आ पाते।सरकारी सुविधाओ का बेजा स्तेमाल करते है।जनहित के कार्यो को भी इसी अन्दाज में लेते हैं।
तीसरे नम्बर- ऐसे जो चकडैत किस्म के होते हैं,जो परिस्थितियों अनुसार गिरगिट की तरह रंग बदलते है,जो ये दिखाने की कोशिश करते है,वे हर काम को पूरी नेक दिली से करते हैं,अपने कडक व्यवहार, स्वभाव को दिखाने का असफल प्रयास करते हैं ,लेकिन वे जो दिखते हैं वो होते नही,उनके मन में कुछ और व्यवहार में कुछ और होता है,अपने अधीस्थो को हड़का कर कार्य करवाने के साथ ही गैरसंवैधानिक कार्य करवाकर अकूत सम्पत्ति जोडने पर ध्यान रहता है,वे जनप्रिथिनिधियो को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं।
इनको प्रोत्साहन देने के प्रत्येक विभाग में कुछ चमचे, चरणवन्दना करने वाले अधिकारी होते हैं। हमारा मानना है यदि जनप्रतिनिधि स्वच्छ छवि को हो,प्रशासनिक कार्य ,व धरातलीय कार्यो का अनुभव हो,और जिनका मकसद केवल जनसेवा हो, तो सुधार की गुंजाईश हो सकती है,लेकिन ऐसी कल्पना करना आज के भौतिकवादी युग में दिवास्वपन देखना होगा।

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