सामाजिक सरोकार, अनकही – ललित पहाडी

सामाजिक सरोकार , अनकही – ललित पहाडी डॉ लोहिया ने कहा था कि अगर सड़के खामोश हो गयी तो संसद आवारा हो जायेगी. वर्तमान परिपेक्ष्य में यह कहावत भारत पर…

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आगामी 9 नवम्बर को उत्तराखण्ड मनाएगा अपना 24वां जन्मदिन, इन सालों में कितना हुआ विकास….-विक्रम बिष्ट

टिहरी आगामी 9 नवम्बर को उत्तराखण्ड राज्य अपना 24वां जन्मदिन धूमधाम से मनाएगा। उपलब्धियोंं के ढो़ल पीटे जाएंगे। अटल जी ने दिया है (!) राज्य निर्माण के इतिहास को इस…

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अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने और बचाने के लिए दुश्मन का डर दिखाना सबसे सरल उपाय -विक्रम बिष्ट

टिहरी उत्तराखण्ड क्रांति दल को खुद को साबित करने के जितने अवसर मिले हैं, बहुत कम उदाहरण हैं, गंवाने के भी। देश में जितने भी क्षेत्रीय राजनीतिक दल रहे आये…

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विश्वगुरु बनने के प्रयास में भारत के लिए सावरकर और जिन्ना की प्रासंगिकता क्या हो सकती है? -विक्रम बिष्ट

टिहरी विश्वगुरु बनने के प्रयास में भारत के लिए सावरकर और जिन्ना की प्रासंगिकता क्या हो सकती है? पाकिस्तान को अपना कृत्रिम वजूद बचाने के लिए दोनों प्रतीकों की तब…

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राज्य सभा के लिए टिहरी का सबसे सशक्त विकल्प हैं सूर्य प्रकाश सेमवाल।

जनता की हाई कमान से मांग सूर्य प्रकाश सेमवाल या पीयूष गोयल को करें राज्यसभा के लिए नामांकित। नीति आयोग ने देश के पिछड़े जिलों को नापने का जो मानक…

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बढ़ता पलायन और खाली होते गांव चिंता के विषय – एस एम बिजल्वाण।

समाचार पत्रों की रिपोर्ट के अनुसार 734 गांव खाली हो चुके हैं। सरकारो ये सोचना होगा आखिर ये बसबसाये ये गांव आखिर किन कारणो से खाली होते जा रहे है। स्पष्ट है, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओ का अभाव शीर्ष में रहा है। हमेशा राज्य बनने से पहले भी और राज्य बनने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। इसके लिये हमारे नीति नियन्ताओ को जिम्मेदार माना जा सकता है। यदि हर बर्ष पलायन के एक ही कारण पर कार्य होता तो 22 बर्ष के इस युवा उत्तराखण्ड की स्थिति कुछ और ही होती ,लेकिन इसके पीछे जो कारण हम समझ पाये,उसमें बिना सोचे समझे उसकी उपयोगिता जाने योजनाये बनाना और उस पर जनता का धन का अपव्यय करना है । यदि योजनाये बनती है तो उनके अनुरक्षण की दिशा में ध्यान ही नही दिया जाता है और योजनाये बनने के साथ ही खराब होने लगती हैं । तब चाहे गांव की सड़कें , नहरे हो ,पेयजल योजनाये,या शिक्षा के मन्दिर ,या स्वास्थ केन्द्र हों । हमने देखा कई भवन बनकर वीरान पड़े पड़े खराब हो गये हैं , जिस पर पैसा, समय , मेहनत सब बरबाद हो गया। इसलिये ऐसी योजनाये बननी चाहिये जो उपयोगी हों और जनता को सीधा लाभ मिले।
दूसरा मुख्य कारण है पहाड़ों की नदियों पल बडे बडे बांधो का निर्माण कर यहां के कई पलायन के लिये मजबूर हुये या मजबूर किये गये। जरूरी विकास जरूरी है,लेकिन विस्थापन के दंश की शर्त पर नहीं होना चाहिये। इन बांधो के कारण यहां संस्कृति, भूगोल , इतिहास सब बदल गये। केन्द्र व राज्य सरकारों को चाहिये कि वे छोटे बांधो के साथ ही सौर ऊर्जा,हवा से ऊर्जा पैदा करने की दिशा को आगे बढाना चाहिये , इससे साथ स्थानीय लोगो की गैर उपजाऊ भूमि का उपयोग होगा तो , सीधा रोजगार व आय के स्रोत बनेगे। पर्यटन के नये केन्र्द बनेगे और पलायन रूक सकेगा।

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तीन टाइप के अफसर और अपना अनुभव-एस एम बिजल्वाण।

मैंने अपने 38 बर्ष की सरकारी सेवाओ के दौरान दर्जनो व्यूरोक्रेटो के साथ कार्य किया।मैंने तीन किस्म के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी देखे।
पहला नम्बर -ऐसे कि वे जनसेवा को अपना लक्ष्य बना कर चलते,अधिकारी कर्मचारियो को टीम भावना से कार्य करने को प्रेरित करते है,और स्वयं भी 24×7 जनता के लिये उपलब्ध रहते है,वे स्वयं भी नियम का पालन करते हैंऔर अपने अधीनस्थ कर्मचारी अधिकारियो से भी अपेक्षा करते है,लापरवाह कर्म चारियो को सुधरने का मौका देने के साथ ,न सुधरने पर कठोर कार्रवाई भी करते है।सरकारी सुविधाओ का वेजा स्तेमाल नही करते।वे अपने कार्यो से ही जनप्रिय होते है,जिन्हें जनता से अगाध सम्मान मिलता है।
दूसरा नम्बर-ऐसे जो वर्गवाद, जातिवाद,SC/ST के मोह में हमेशा उलझे रहते है,और अपने अधीनस्थ कर्मचारियो के हर कार्य में मीनमेख निकालते रहते है,उन्हे प्रताडित करने का बाहना ढूढते रहे है,चाहे आप अच्छा कार्य करे या नहीं,वे जनता के साथ भी व्वहारिक रूप से भी हमेशा जातिवाद के फोबिया से बाहर नहीं आ पाते।सरकारी सुविधाओ का बेजा स्तेमाल करते है।जनहित के कार्यो को भी इसी अन्दाज में लेते है।
तीसरे नम्बर- ऐसे जो चकडैत किस्म के होते हैं,जो परिस्थितियों अनुसार गिरगिट की तरह रंग बदलते है,जो ये दिखाने की कोशिश करते है,वे हर काम को पूरी नेक दिली से करते हैं,अपने कडक व्यवहार, स्वभाव को दिखाने का असफल प्रयास करते है,लेकिन वे जो दिखते है वो होते नही,उनके मन में कुछ और व्यवहार में कुछ और होता है,अपने अधीस्थो को हडाका कर कार्य करवाने के साथ ही गैरसंवैधानिक कार्य करवाकर अकूत सम्पत्ति जोडने पर ध्यान रहता है,वे जनप्रिथिनिधियो को प्रभावित करने का प्रयास करते है।
इनको प्रोत्साहन देने के प्रत्येक विभाग में कुछ चमचे, चरणवन्दना करने वाले अधिकारी होते है। हमारा मानना है यदि जनप्रतिनिधि स्वच्छ छवि को हो,प्रशासनिक कार्य ,व धरातलीय कार्यो का अनुभव हो,और जिनका मकसद केवल जनसेवा हो, तो सुधार की गुंजाईश हो सकती है,लेकिन ऐसी कल्पना करना आज के भौतिकवादी युग में दिवास्वपन देखना होगा।

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