विश्वगुरु बनने के प्रयास में भारत के लिए सावरकर और जिन्ना की प्रासंगिकता क्या हो सकती है? -विक्रम बिष्ट

टिहरी

विश्वगुरु बनने के प्रयास में भारत के लिए सावरकर और जिन्ना की प्रासंगिकता क्या हो सकती है? पाकिस्तान को अपना कृत्रिम वजूद बचाने के लिए दोनों प्रतीकों की तब तक जरूरत रहेगी जब तक वह गलती से न उबरे अथवा भरभराकर गिर न जाए । भारत को अपने उच्च आदर्श प्रेरित लक्ष्य हासिल करने के लिए सामाजिक एकजुटता पहली शर्त है , क्या ये दोनों नाम देश-समाज की एकजुटता के प्रतीक हैं ?
आस्था के नाम पर एक-दूसरे के खिलाफ अविश्वास, घृणा और हिंसा का विषाक्त वातावरण बनाने की कोशिशों को देशभक्ति नहीं माना जा सकता है ! इस रुग्णता में तो हिंसा, लूट और तमाम तरह के अपराध ही पनपते हैं, वेषभूषा, नारे जिस रंग, ढंग के होंं, भुगतना समाज को ही पड़ता है।
. असमानताग्रस्त और बंटा हुआ समाज बदनसीबी का आसान शिकार होता है। देश की गुलामी का मुख्य कारण यही रहा है। जब देश एकजुट होकर अपनी आजादी और आत्मसम्मान के लिए अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ रहा था तो अधिकांश देशी सामंत और धर्म- सम्प्रदाय के स्वयंभू ठेकेदार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अंग्रेजों का सहयोग कर रहे थे।
देश का आम जनमानस किसी को गाली नहीं दे रहा है। यह शांति से जीना चाहता है।
इसे अविश्वास, घृणा, हिंसा, भय का दमघोटू माहौल नहीं, परस्पर विश्वास, सहयोग , प्रेम की दुनिया चाहिए। यही हमारी हजारों वर्ष पुरानी धरोहर है। इसकी सनातन सुरक्षा के लिए किसी ने विषपान किया, कोई फांसी चढ़ा, किसी ने सीने पर गोलियां खाईं। उस महान परम्परा को अपना देश कुछ लोगों की अदम्य महत्वाकांक्षाओं के नाम समर्पित नहीं कर सकता हैं, न किसी को इसकी अनुमति देगा! सबक भी है, संकीर्णता के मुकाबले व्यापक समझ भी, इतिहास साक्षी है।
जय हिन्द !

Epostlive.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *