उत्तराखंड सरकार ने नौकरियों में स्थानीय महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की विशेष रिट याचिका

उत्तराखंड

उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में स्थानीय महिलाओं को 18 जुलाई, 2001 से आरक्षण मिलना शुरू हुआ था। तब 20 फीसदी आरक्षण से इसकी शुरूआत हुई थी। 24 जुलाई, 2006 में इसमें बढ़ोतरी करते हुए 30 फीसदी कर दिया गया था। अभी तक सिर्फ एक शासनादेश के आधार पर नौकरियों में स्थानीय महिलाओं को आरक्षण का यह लाभ मिलता आ रहा था।उत्तराखंड सरकार ने नौकरियों में स्थानीय महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष रिट याचिका (एसएलपी) दायर कर दी है। अब कानूनी दांव-पेंच के बाद ही तय होगा कि राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलेगा या नहीं।पिछले साल लोक सेवा आयोग की उत्तराखंड सम्मिलित प्रवर सेवा परीक्षा के बाद इसी वर्ष जब रिजल्ट घोषित हुआ तो हरियाणा की एक महिला अभ्यर्थी पवित्रा चौहान इसके खिलाफ हाईकोर्ट चली गई थी। अभ्यर्थी का तर्क था कि उसके नंबर उत्तराखंड की स्थानीय अभ्यर्थी से ज्यादा थे लेकिन उसे बाहर कर दिया गया। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद 24 अगस्त को स्थानीय महिलाओं को मिल रहे क्षैतिज आरक्षण पर ही रोक लगा दी।

सोमवार को राज्य सरकार की तरफ से एडवोकेट आन द रिकार्ड वंशज शुक्ला ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर दी है। कार्मिक विभाग के अपर सचिव डा. ललित मोहन रयाल ने इसकी पुष्टि की है। सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार की तरफ से महिला आरक्षण बरकरार रखने के लिए दिए शपथ पत्र में कई तर्क दिए गए हैं।

सरकार की ओर से कहा गया कि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां अन्य प्रदेशों से भिन्न हैं। यहां की महिलाएं पूरी तरह से अपने स्थानीय आजीविका पर निर्भर हैं। चूल्हे से लेकर खेत-खलिहानों का काम उन्हीं पर निर्भर है। सरकारी नौकरियों में स्थानीय महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है लिहाजा समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए सरकारी नौकरियों में उनके लिए आरक्षण बहुत जरूरी है।

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