
टिहरी
23 नवम्बर 1987 को हम लगभग इसी समय दु:ख और मायूसी के साथ दिल्ली रैली से लौट रहे थे, उसी टैक्सी से जिससे हम बड़े उत्साह के साथ पिछली रात ऋषिकेश से देश की राजधानी को अपने मन की बात सुनाने के लिए चले थे। लेकिन हममें से कोई था, जिन्हें हम दिल्ली के अस्पताल में छोड़ कर लौट रहे थे।
नैनीताल, पौड़़ी रैली और 9 अगस्त के उत्तराखण्ड बंद की सफलता के बाद दिल्ली में रैली आयोजित करने का निर्णय लिया गया था। टिहरी शहर से हमारी एक बस, सभी छात्र।
ऋषिकेश में पार्टी के केन्द्रीय उपाध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार जी ने मुझे रोक लिया था कि यहां से जाने वाले सभी साथियों को देख लेते हैं, कोई छूट तो नहीं रहे हैं। फिर हम गाड़ियों के काफिले के आगे पहुंच गये थे। सुबह होने से पहले काफिले को कुछ सुस्ताने के लिए रोक दिया गया था। बहुत सारे लोग गाड़ियों से उतर गये थे। हमारे बीच से भी। तभी चिल्लाने की आवाज आई, कोई नीचे गिर गया है। हम हड़बाये से टैक्सी से उतरे। तब तक लोग उन्हें उठाकर ला रहे थे, त्रिवेन्द्र पंवार। हम उन्हें अस्पताल ले गए। दिल्ली में…। उक्रांद नेताओं में दिवाकर भट्ट जी ही वहां पहुंचे थे।
शेष…!