
उत्तराखण्ड आंदोलनः एक झलक
खादी का कुर्ता-पैजामा, कपड़े का सस्ता जूता। सामने जो भी दिखा, विनम्रता से नमस्कार! आज की राजनीति में कोई कल्पना नहीं कर सकता है कि ऐसा कोई शख्स तीन बार यूपी विधानसभा का सदस्य रहा हो। उत्तराखण्ड के इतिहास में वह पर्वतीय गांधी के नाम से स्वर्णाक्षरों में उपस्थित है।
टिहरी गढ़वाल के गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे इन्द्र मणि बडोनी 1967, 69 और 1977 में देवप्रयाग क्षेत्र से विधायक रहे हैं। तीनों चुनाव उन्होंने धारा के विपरीत लड़ते हुए जीते थे।
विधायक रहते हुए उन्हें एहसास हुआ कि यूपी में रहते पहाड़ों का विकास संभव नहीं है। 8 मई 1970 को विधानसभा में उन्होंने कहा कि यही (भेदभाव, पिछड़ेपन) की स्थिति रही तो जब तीन लाख आबादी वाला मेघालय राज्य बन सकता है तो 40 लाख की आबादी वाले उत्तराखण्ड की आवाज क्यों नहीं उठ सकती है। इसके बाद वह पृथक उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन से जुड़ गए।
राज्य आंदोलन को कैसे मुकाम तक पहुंचाना है, एक छोटी सी घटना से समझ सकते हैं। टिहरी से देवप्रयाग जाते हुए उन्होंने जाखणीधार से आगे जीप रुकवाई और मुझे कहा भाषण दो। आसपास कोई था नहीं, मेरी मनस्थिति भांप कर सामने के पहाड़ी ढ़लान की ओर इशारा करते हुए कहा, वे घसियारिनें तुम्हारी बात सुनेंगी और घर लौट कर लोगों को सुनाएंगी। गांव तक उत्तराखण्ड का रैबार पहुंचेगा।
रैबार तो पहाड़ के हर कोने पहुंचा। सात समन्दर पार से आवाज आई, गांधी को देखना हो तो उत्तराखण्ड में जाकर देखो। अफसोस कि वह उत्तराखण्ड राज्य नहीं देख सके।
आखिरी समय में टिहरी जिला प्रशासन ने उनके प्रति जो लापरवाही और बेरुखी बरती वह संवेनहीनता की मिसाल भर थी या भविष्य की सूचक !
उत्तराखण्ड आंदोलनः एक झलक। (स्मारिका 2022-23 )
