
उत्तराखण्ड किधर है,
अंकिता भण्डारी के साथ जो हुआ!
किरन नेगी के हत्यारों को सजा से बचाने की साजिश कानून की आड़़ में ही रची गई थी ?
उत्तराखण्ड आंदोलन का मुजफ्फरनगर काण्ड मुलायम सिंह सरकार के दौरान हुआ था। मायावती उस जघन्य काण्ड को जायज ठहराने वाली पहली नेता थीं। फिर भाजपा के समर्थन से यूपी की मुख्यमंत्री बनीं। गेस्ट हाउस काण्ड के बाद उन्होनें कहा था कि जरूर मुजफ्फरनगर में महिलाओं पर अत्याचार हुआ होगा। लेकिन दोषियों को सजा दिलाने की कोशिशें नहीं की गई़ं । उसके बाद भाजपा सरकार ने इस मामले में न्याय दिलाने के रास्ते ही बंद कर दिए।
मुजफ्फरनगर काण्ड के दौरान वहां के किसानों ने उत्तराखण्डियों की मदद की। उनमें जाट भी थे और मुसलमान भी।
आज एक कथित राजपूत नेता को बचाने के लिए कई हथकण्डे अपनाए जा रहे हैं। महिला पहलवानों पर कीचड़ उछालने की कोशिशें की जा रही हैं। यह जुमला भी उछाला जा रहा है कि इन पहलवानों पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। तो क्या संस्कारी भारत में बेटियों के सम्मान को जातियों, रुपयों में तोला जाए ?
उत्तराखण्ड आंदोलन के दौरान भी यह सवाल उछालने की कोशिशें की गई थीं, कि
वे (पीड़ित) महलाएं रैली में गईं ही क्यों थीं।
पत्रकार उमेश डोभाल हत्याकांड को लेकर आंदोलन के खिलाफ राजपूत सभा के नाम से पोस्टर छापे गये थे। बहुत कहानियां हैं।
फिलहाल तो हमें यह साबित करना है कि हम किस तरफ हैं, देवभूमि के जुमलों के या न्याय के !