जीत जाते इन्द्रमणि बडोनी जी तो…- विक्रम विष्ट

टिहरी

जीत जाते इन्द्रमणि बडोनी जी तो,,
1989 के लोकसभा के आम चुनाव नवंबर में होने थे। इसके साथ यूपी विधानसभा चुनाव भी समय से कुछ पहले।
उससे कुछ माह पूर्व उक्रांद केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जाते हुए बडोनी जी ने अचानक मुझे कहा, टिहरी विधानसभा चुनाव तूने लड़ना है। बाकी जिम्मेदारी मेरी। साथ में दल के उपाध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार जी ने भी कहा बाकी मैं भी। मेरे लिए यह अप्रत्याशित था।
बहरहाल चुनाव तिथियों की घोषणा होने के बाद दल की केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक डाक पथर में हुई। बैठक सम्पन्न होने के बाद मैं टिहरी के अपने साथियों के साथ सोने चला गया। पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक देर रात चलती रहने वाली थी। लेकिन हमारे जिलाध्यक्ष जनार्दन कुकशाल आये और उन्होंने कहा टिहरी विधानसभा के टिकट के लिए आवेदन मांग रहे है। किंतु-परंतु जोड़कर मैंने उन्हें लौटा दिया। वह उलटे पैर लौटे, कहा बडोनी जी कह रहे हैं उसे चुनाव लड़ना है। उसका आवेदन पत्र लेकर आओ । मरता क्या न करता..। चार लाइनों में लिख कर अध्यक्ष जी के हाथों भेज दिया।
इस मुसीबत से छुटकारे के लिए एक तकनीकी नुस्खा मेरी समझ में आ गया था। उसकी आवश्यकता नहीं हुई।
अब मुख्य बात पर आते हैं। बडोनी जी टिहरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे, यह तय हो गया था। उम्मेद सिंह रावत टिहरी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित किए गए। लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन नई टिहरी में विधानसभा के लिए टिहरी।
बडोनी जी के नामांकन के बाद सांय हम टिहरी पहुंचे तो हमें सूचना मिली कि भाकपा नेता और राष्ट्रीय मोर्चा प्रत्याशी कमला राम नौटियाल जी पार्टी कार्यालय में बैठे हैं, और तालमेल के लिए बातचीत करना चाहते हैं। यह सूचना हमें मिल गई थी कि हमारे घोषित प्रत्याशी ने नामांकन नहीं किया है।
भाकपा कार्यालय में नौटियाल जी के साथ टिहरी विधानसभा क्षेत्र से बरफ सिंह रावत जी, देवप्रयाग से राजेन्द्र कोटियाल जी भी मौजूद थे। नौटियाल जी ने राष्ट्रीय मोर्चा और बडोनी जी ने उक्रांद का पक्ष रखा। बात समझौते पर हुई कि भाकपा मैदान से हटेगी तो उक्रांद बदले में क्या देगा। हमने कहा टिहरी विधानसभा सीट। सामने से जवाब था और सौदे-समझौतों के हिसाब से सही था कि टिहरी में आपका उम्मीदवार ही नहीं है तो आप किसको सपोर्ट करेंगे।
बडोनी जी यह कहते हुए कि दिवाकर (देवप्रयाग) से चुनाव लड़ेगा झटके से उठे बाहर निकले। नौटियाल जी ने यह कहते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की कि मैं नहीं लड़ूंगा,, सुन तो लीजिये। लेकिन बडोनी जी अनसुनी कर… गुरुद्वारा के सामने पूर्व सांसद परिपूर्णांनद पैन्यूली जी मिले, उन्होंने जनता पार्टी से नामांकन किया था। उन्होंने भी कहा कि मैं आपके पक्ष में नाम वापस ले लूंगा।
नौटियाल जी को करीब पिच्चासी हजार मत मिले, और उक्रांद लगभग बारह हजार मतों से चुनाव हार गया। यह निर्णायक मतांतर उत्तरकाशी और टिहरी विधानसभा क्षेत्रों से हुआ था।
किसी ने कहा है,
वो जब्र भी देखा है तारीख की नजरों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई।
फोटो- साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नई दिल्ली, नवंबर 1989!
इस चुनाव के परिणाम के सभी पक्षों को आज की सतही राजनीति और मीडिया खैर …. । हम को समझने की जरूरत है।
ऐसी कई घटनाएं,.. और हैं कोशिश करेंगे ताकि…

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