ये मई … ऐपड़ि बई। घर मा रई ,कखी न जई । खई पैई अर सैंयू रई,पर तू भैर कतै न जई ।

ये मई … ऐपडि बई
घर मा रई ,कखी न जई,
खई पैई अर सैंयू रई
पर तू भैर कतै न जई ।

किताब पढ़ी, गीत सुणी
या त ऊन की स्वेटर बुणी
चैकू चूल्हू तू करदू रई
झाडू पोछा म वक्त बितई !!
पर तू भैर कतै न जई ।

रिश्तेदारों तैं फोन मिलई
दोस्त यारों तैं याद दिलई
सेवा सौंली सबू तै भेजदू रै
राजी खुशी त्यूं की पुछणू रई
पर तू भैर कतै न जई ।

गरीब छैं त गरीब ही रई
झोली झंगौरू छंछैणू खई
लोग त्वै मा दैण क आला
तू कैम मागण न जई
पर तू भैर कतै न जई ।

अंधियारा का बाद उजालू आळू
नयू सुरज तब जगमगाळू
बंच्या रौला त मेहनत करला
ई बात अपणा बच्चों बिंगई
पर तू भैर कतै न जई….!!! साभार- सतीश राणा अगस्त्यमुनि चाका

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