
उत्तराखंड सरकार ने पुण्य फल का पिटारा फिर खोल दिया है। साल के आखिरी दिन तक पुण्य फल बांटे जाएंगे।जी मतलब, उत्तराखंण्ड आंदोलनकारियों को! या,,,को ?
उत्तराखंड के सच्चे आंदोलनकारियों की पहचान तो होनी ही चाहिए। वरना हमारे जैसे लोगों को अभी भी भ्रम है कि हम भी कभी आंदोलनकारी थे। इस बार यह भ्रम पूरी तरह समाप्त कर दिया जाना चाहिए! सरकार, उसके समदर्शी+ सहश्रचक्षु+ न्याय के प्रति समर्पित तंत्र से पूरी उम्मीद है। भाजपा+ कांग्रेस+ फिसल पड़े तो हर-हर गंगे ख्याति प्राप्त राज्य आंदोलनकारियों के सहयोग से।
इस ढूंढने- ढांढ़ने के पुण्य कर्म की शुरुआत तिवारी जी ने की थी। वह उत्तराखण्ड राज्य के सबसे बड़े पैरोकार थे, क्या धांसू डायलाग मारा था- उत्तराखंण्ड राज्य मेरी लाश पर बनेगा! बन ही गया तो चलो चुपचाप मैं ही मुख्यमंत्री बन जाता हूं। आंध्र प्रदेश बाद में देख लूंगा। दिल्ली में अपनी कांग्रेस का राज़ होगा जब। दरिया दिल नेता थे इसलिए चिन्हीकरण के लिए ऐसे मानक तय किए गए जिसके तहत नकली,,,
मेरा मतलब असली आंदोलनकारी तुरंत चिन्हित हो सकें। कांग्रेस, भाजपा बराबर, कुछ चंट- चालाक। और जिनको सरकारी रिकॉर्ड खंगाल कर इस पुण्य कर्म में बड़ी जिम्मेदारी निभानी है उनका भी तो कुछ बनता है।
सरकार ने एक महान खोज यह भी की थी कि इन्द्र मणि बडोनी उत्तराखंण्ड राज्य आंदोलनकारी थे। कोई शक न रहे इसलिए पौड़ी प्रशासन ने ही बडोनी जी को प्रमाण पत्र जारी किया। अब यह प्रमाण पत्र बडोनी जी को मिला या नहीं यह तो सरकार आप ही पता लगा सकते हैं।
अभी यह सूचना मिली है कि भारत में आखिरी ब्रिटिश
वायसराय ने महारानी विक्टोरिया से पुन: इंडिया के यूके जाने की अनुमति मांगी है ताकि वह यहां आकर महारानी की ओर से चिन्हित लोगों को ताम्र पत्र बांट सकें ताकि सनद रहे।