
टिहरी
श्रीदेव सुमन और एक अधूरी पटकथा…
मनोज रांगड़ ने आज व्हाट्सएप पर शहीद सुमन के साथ टिहरी में एक अधूरे रह गये प्रयास की याद दिलाई है- श्रीदेव पर एक सम्पूर्ण नाटक की।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक श्रीश डोभाल ने उत्तराखण्ड (गढ़वाल, कुमाऊं) में 80 के दशक में शैलनट नाम की संस्था की स्थापना की थी। टिहरी भी उस श्रृंखला का हिस्सा रही है। लगभग तीन महीनों की कार्यशाला के बाद चार नाटकों का मंचन किया गया, जिनमें हरिकृष्ण रतूड़ी जी की गढ़वाली कृति ‘ पांखू ‘ पर आधारित नाटक भी शामिल था।
कुछ वर्ष बाद शैलनट ने शहीद श्रीदेव सुमन नाटक पर काम शुरू किया। अधूरी या सुनी- सुनाई कहानियों पर तो काम नहीं हो सकता था। जितना संभव हुआ चार गैल्या ( दोस्त) उस आधार पर पटकथा लेखन में जुटे। कई रोचक अनुभव रहे हैं, कुछ मनोज जी ने याद भी दिलाए हैं।
नाटक का मंचन प्रताप इण्टर कालेज में किया गया। शुभमुहूर्त का मुख्य अतिथि कौन ? कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार । उनके बारे में कई भ्रांतियां फैलाई गई थीं। अपना
स्वार्थ साधने या द्वेष निभाने के लिए किसी व्यक्ति, समूह और समाज के खिलाफ यह धत्कर्म चलता रहा आया है। राजकुमार विचित्र शाह के पुत्र कैप्टन शूरवीर सिंह जितने बड़े विद्वान थे उतने ही सरल। उन्होंने सहजता से आमंत्रण स्वीकार कर लिया।
चार गैल्यों द्वारा शुरू की गई वह पटकथा आज भी अधूरी है,,कोशिश निश्छल निस्वार्थ थी, आशंका यह है कि एक और महापुरुष इन्द्रमणि बडोनी के साथ भी..