भौंकुछ -विक्रम बिष्ट : हरदा का हरेला, पंजाब में करेला।


हरेला प्रकृति के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक है। करेला मनुष्य के लिए, बशर्ते करेला नीम न चढ़े, पंजाब की तरह।
कांग्रेस धर्म निरपेक्ष पार्टी है, इसलिए उसने पंजाब में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के लिए श्राद्ध पक्ष का इंतजार नहीं किया। ठोको ताली! भाजपा और आप का तो धर्म बनता ही है।
भाजपा नेता कांग्रेस को कोसते रहते हैं यह सब चलता है। लेकिन अपने हरदा का तो उन्हें ऋणी होना चाहिए।
उत्तराखण्ड आंदोलन के दौरान हरदा और उनकी टीम के धुरंधरों ने ठीक से पते न खेले होते तो उत्तराखंड क्रांति दल भाजपा के लिए मुसीबत बन गया होता। देवभूमि में जै बद्री, जै केदार – उत्तराखंड की हो सरकार के नारे गूंज रहे होते।
जिनके पास सौ-पचास
वोट की हैसियत नहीं थी, उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के स्वयंभू नेता घोषित होकर चुनाव बहिष्कार का निर्णय उक्रांद पर थोप गये। चुनाव लड़ता उक्रांद तो भाजपा की भी वही गत होती जो तब कांग्रेस की हुई थी।
मोदी जी को राजधर्म
याद दिलाने की याद अटल जी को बाद में आई। उत्तरांचल में मित्र धर्म निभाने के बाद, ओम् स्वामी, पहले चुनाव में भाजपा चित।
पूरे पांच साल हरदा टीम तिवारी जी की कुर्सी हिलाती रही। तब जाकर बमुश्किल ही सही भाजपा की सत्ता में वापसी हुई।
कांग्रेस ने हरीश जी से न्याय नहीं किया। किया तो बीच में बंटाधार। अब कभी असम, कभी पंजाब। असम से विदाई के बाद पंजाब । उत्तराखण्ड तो अपना है। लेकिन कांग्रेसी हरदा को डोबरा- चांठी का श्रेय देने को भी तैयार नहीं हैं।
चलिए, पितृपक्ष के दौरान अशुभ नहीं सोचते। नवरात्रि पर्व आने वाले हैं, हरियाली की तैयारी के साथ सोच-विचार करते हैं। कहां नीती और कहां माणा, श्याम सिंह पटवारी ने कहां-कहां जाणा, बल !

Epostlive.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *