भौंकुछ :विक्रम बिष्ट -कल के घोड़े आज महापापी!

देवभूमि है । यहां कोई भी कुछ भी कर सकता है। कुछ भी कह सकता है। घिच्चा का बाबा कु क्य जांदू,, बल, ,हैं,।
साल दो हजार सोलह की बात है। जब देवभूमि के लगभग डेढ़ दर्जन घोड़ों का महाव्यापार हुआ था। उनके पीछे हजारों घोड़े,,,,। छोड़िए। भारत सोने की चिड़िया थी, काली मिर्च के व्यापारी लूट कर ले गये। लुटना ही जिंदगी है लुटाए जा,। राष्ट्र का न सही उत्तराखण्ड का राज्यगान तो हो सकता है। आखिर हम देवभूमि राज्य हैं।
उस महाव्यापार से देवभूमि का नाम प्रचण्ड रूप से प्रसिद्ध हुआ। तब इन्द्रासन डोला, गिरा, उठा, बैठा। देवभूमि की बेबस जनता तो जनता ही ठहरी।
मीडिया महारानी ने उसे हार्स ट्रेडिंग की उपाधि से नवाजा। मीडिया महारानी खुद इस ट्रेडिंग की ब्राण्ड अंबेस्डर है। सड़ांध से बचते हुए दिखने के लिए मास्क हमारी दिव्य परम्परा चली आई है। कोऱोना तो बस बदनाम हो गया है।
घोड़ा व्यापार अभी फुटकर में है। साल दो हजार सोलह में हरदा घाटे में रहे थे, पीड़ा स्वाभाविक है। इसलिए उनको अटल जी की याद आ रही है और याद दिला रहे हैं कि,,, महापाप है। महापाप से डर है या डरा रहे हैं?

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