
आप मानो चाहे ना मानो, उत्तराखंड की राजनीति में यदि रस है तो हरदा और हरक सिंह भैजी की बदौलत है।
भारतीय काव्य शास्त्र में नौ रस हैं। इन दोनों में सभी के अलावा भी कई समरस हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि दोनों अपनी-अपनी जगह वरिष्ठ हैं। हरीश रावत १९८० में डाक्टर मुरली मनोहर जोशी को हराकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रविष्ठ हुए। हरक सिंह उत्तर प्रदेश की पहली भाजपा सरकार में मंत्री।
हाल फिलहाल उत्तराखंड की राजनीति इनकी जुगलबंदी के इर्द-गिर्द घूम रही है। वीर रस कब शांत रस के साथ रौद्र रूप का श्रिंगार कर अद्भुत वीभत्स हास्य में प्रकट हो जाए, बड़े-बड़े राजनीतिक ज्योतिषी नहीं बता पाते हैं।
इधर दो विधायकों को अपने पाले में लाकर भाजपा के तीस मारखां चौड़े हो रहे थे। उधर कांग्रेस ने सीधे सपुत्र मंत्री को समेट कर नहले पर दहला नहीं सीधे हुकुम के इक्के के साथ गद्दी अपनी पक्की
घोषित कर दी।
बीच में हरदा और हरक भैजी के श्री मुखों से वीर, करुणा, रौद्र, श्रृंगार सहित सभी रस प्रवाहित हुए और भाजपा कांग्रेस फुस्स। बहुत कोशिशें की थीं, थैली मीडिया के साथ बाक़ी को भी घेरघार कर मेले सजाने की।
इधर से एक सुर निकला उधर से भी बजा। रस कौन-कौन सा था, सुर्खियां तो हरदा और हरक सिंह बटोर ले उड़े। जय बाबा केदारनाथ।