
भाजपा का दावा है कि उत्तराखंड राज्य उसकी देन है। कभी भाजपा उत्तराखंड राज्य की मांग को अलगाववादी बताती थी।
मन परिवर्तन हुआ तो उत्तरांचल नामधारण कर पृथक पर्वतीय राज्य समर्थक हो गई।
उत्तराखंड नाम में अलगाववाद की बास आ रही थी, इसलिए उत्तर अंचल या ,,
बहरहाल, भाजपा के जन्म के लगभग आठ साल पहले पृथक पर्वतीय राज्य निर्माण के लिए नैनीताल में उत्तरांचल परिषद का गठन किया गया था।
दिलचस्प तथ्य यह है कि उत्तरांचल परिषद को व्यापक आधार देने में कांग्रेस विधायक इन्द्रमणि बडोनी की महत्वपूर्ण भूमिका थीं। बडोनी जी उत्तराखण्ड राज्य परिषद के प्रमुख नेता थे।
टिहरी के विधायक गोविन्द सिंह नेगी सहित विद्यासागर नौटियाल, कमलाराम नौटियाल जैसे जुझारू कामरेड। यानी कि राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर उत्तराखंड राज्य निर्माण का पवित्र लक्ष्य।
राजनीतिक तोड़फोड़ का अपना व्याकरण है। वरना उत्तराखंड यानी उत्तर अखंड और उत्तरांचल = उत्तर अंचल
उत्तराखंड में जनसंघ और भाजपा के बड़े स्तंभ शोभन सिंह जीना, देवेन्द्र शास्त्री जी को उत्तराखंड नाम से परहेज़ नहीं था। मनोहरकांत ध्यानी जी को भी नहीं। मुझे याद है कि उक्रांद की एक बैठक में रामनगर जाने के लिए उन्होने ऋषिकेश से हमें गाड़ी दी थी। कहने का तात्पर्य यह है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण के संघर्ष में असंख्य नामीगिरामी और इनसे हजारों गुना गुमनाम लोगों का योगदान है।
इतिहास को अपने हिसाब से लिखने की सरकारी कोशिशें कागज पर ही ठीक लग सकती हैं, कागज की नाव भला कब तक?15 अगस्त 1996 को प्रधानमंत्री एचडीदेवगौड़ा
की उत्तराखंड राज्य बनाने की घोषणा के साथ इसके लिए संविधानिक प्रक्रिया शुरू हो गई थी। उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक-1998 में
उत्तराखंड के साथ उत्तरांचल नाम नथी कर दिया गया। तब केन्द्र में भाजपा सरकार बन गई थी और उत्तर प्रदेश में भी। उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखंड नाम पर स्याही पोतकर पहाड़ का आंचल उतारने की सिफारिशों के साथ विधेयक केन्द्र को भेज दिया।