
उतराखंड आंदोलन के इतिहास की घटनाओं को हमने संक्षेप में याद किया है। इसके वैचारिक पक्ष पर व्यापक बहस के बिना शहीदों के सपनों का उत्तराखंड कैसे बनाएंगे!
1946से लगातार कोशिशों के बावजूद उत्तराखंड आंदोलन अपेक्षित दिशा पर नहीं चल रहा था। आंदोलन से जुड़े लोगों को महसूस हुआ कि एक प्रतिबद्ध क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन की आवश्यकता है।
24-25 जुलाई 1979 को मसूरी में एक सम्मेलन में व्यापक चर्चा के बाद उक्रांद का गठन किया गया। प्रतिष्ठित और स्वाभिमानी शिक्षाविद डा. देवीदत्त पंत संस्थापक अध्यक्ष बने।
हमारी कोशिशें उत्तराखंड राज्य निर्माण के सभी पहलुओं तक पहुंचने की है।
उत्तराखंड सरकार राज्य आंदलनकारियों के चिन्हीकरण, प्रमाण पत्र और पेंशन बांटने के सत्कर्म में जुटी हुई है। जाहिर है सरकार के अपने मानक हैं। धन्यवाद।
लेकिन योगदान उनका भी है जो सरकार के चश्मोनाजर से दूर हैं।
हम शुरू कर रहे हैं,
परेन्द्र सकलानी,
1987-88 में टिहरी परिसर छात्रसंघ चुनाव से पहले नैनीताल रैली में परेन्द्र मेरे साथ शामिल थे। अधिवक्ता गोविंद सिंह कलूड़ा जी भी।
अगस्त 1986 में उक्रांद के उपाध्यक्ष और कीर्तिनगर के ब्लाक प्रमुख दिवाकर भट्ट जी.ने पुराना दरबार टिहरी स्थित हमारे घर आकर मुझे दल की.सदस्यता. दी थीं ज्येष्ठ भ्राताश्री अब्बल सिंह बिष्ट जी की सहमति से। दोनोँ पुराने सहयोगी. रहे हैं।
ग्यारहगांव, हिन्दाव से फरवरी 86 में शुरू. वनांदोवन के दौरान भट्ट जी से मैरी जान-पहचान हुई थी।
आंदोलन की शुरुआत मंत्री प्रसाद नैथानी के साथ शुरू की गई थी। उतराखंड आंदोलन के लिए वह मील का पत्थर साबित हुआ। इन्द्र मणि बडोनी. जी की.सक्रिय राजनीति में वापसी उसी आंदोलन से हुई थी। बिस्तार से आगे,,।
दाताराम चमोली, पुरुषोत्तम बिष्ट शुरुआती साथी रहे हैं। फिर परेन्द्र सकलानी जुड़े। 10 नवंबर 86 को उक्रांद की नैनीताल रैली में हम साथ थे।
मार्च 87 की पौड़ी रैली, 9 अगस्त के ऐतिहासिक उत्तराखंड बंद और चक्काजाम और 23 नवंबर की दिल्ली रैली तक विक्रम नेगी(एडवोकेट), सुरेन्द्र रावत, मदन जोशी, अनिल अग्रवाल, लोकेंद्र जोशी सहित कई छात्र उक्रांद और राज्य आंदोलन में सक्रिय हो गये थे।