उत्तराखंड आंदोलन: रैलियों का हश्र दिल्ली से पौड़ी तक।- विक्रम बिष्ट।


आपातकाल के बाद देश में 1977 में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी-.जनता पार्टी की। दो बार कांग्रेस विधायक रहे त्रेपन सिंह नेगी जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा सदस्य चुने गए।
उत्तराखंड राज्य परिषद का पुनर्गठन कर सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद नेगी जी को इसका अध्यक्ष बनाया गया।
उनकी अध्यक्षता में दिल्ली वोट क्लब पर उत्तराखंड रैली आयोजित की गई। नेताओं के बीच खुद को बड़ा और असली नेता साबित करने के लिए मंच पर छोटा सा घमासान हुआ। बताते हैं कि किसी ने अध्यक्ष जी की कुर्सी ही लुढ़का दी थी।
उसके बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को ज्ञापन दिया गया। प्रधानमंत्री जी ने टका सा जवाब दे दिया।
एक सितंबर1994 को छात्र संघर्ष समिति द्वारा पौड़ी में आहूत रैली भी निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ी। उस दिन एक तरफ खटीमा में निहत्थे आंदोलनकारियों पर सरकारी गोलियां बरसाई जा रही थीं।इधर पौड़ी में छात्रों के साथ हजारों जागरूक लोग रैली में शामिल थे। मंच पर प्रफुल्ल महंत बनने की महत्वाकांक्षाओं की हास्यास्पद खींचतान के मूक दर्शक!

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