

श्रीलंका। श्रीलंका में आए आर्थिक संकट के बीच स्थितियां जबरदस्त तरह से बिगड़ गई हैं। दरअसल, कर्फ्यू में ढील के एलान के बाद जनता ने सड़कों पर उतर कर जो प्रदर्शन शुरू किया, वह देखते ही देखते पहले राष्ट्रपति भवन और फिर प्रधानमंत्री के आवास तक पहुंच गया। हालात यह हो गए कि एक के बाद एक राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे और फिर पीएम रानिल विक्रमसिंघे को इस्तीफा देने की बात तक कहनी पड़ी। हालांकि, स्थिति यहां से नहीं सुधरी है। श्रीलंका में अब भी बड़े स्तर पर प्रदर्शन जारी हैं।
आखिर अब श्रीलंका का संकट कितना गंभीर हो चुका है?
श्रीलंका का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 82 अरब डॉलर है, जबकि उसके ऊपर मौजूदा कर्ज 51 अरब डॉलर का है। बीते महीनों में जारी आर्थिक संकट की वजह से श्रीलंका इस कर्ज पर ब्याज की राशि भी नहीं चुका पाया है। यानी उसकी कर्ज की राशि लगातार बढ़ती जा रही है। इस समस्या के बीच कोढ़ में खाज का काम किया है श्रीलंका के लगातार गिरते पर्यटन क्षेत्र (टूरिज्म सेक्टर) ने। कोरोना महामारी के बाद से ही श्रीलंका की स्थिति खराब हुई है और प्रतिबंधों की वजह से उसका पर्यटन क्षेत्र तबाह हो चुका है।

श्रीलंका की मुद्रा- श्रीलंकाई रुपये में भी कोरोना के बाद से 80 फीसदी तक की गिरावट आई है,आधिकारिक आंकड़ों की मानें तो रुपये की गिरती कीमत की वजह से निर्यातकों ने भी श्रीलंका से डॉलर में ही पेमेंट की मांग की। ऐसे में मजबूरन श्रीलंका को अपने विदेशी मुद्रा भंडार को खर्च कर अहम उत्पादों का आयात जारी रखना पड़ा। श्रीलंका में इस वक्त लोगों के पास खाना खरीदने तक के पैसे नहीं हैं और वे दिन में एक ही बार खाना खाकर गुजारा कर रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (वर्ल्ड फूड प्रोग्राम) के मुताबिक, इस वक्त श्रीलंका में 10 में से नौ परिवार एक समय का खाना छोड़ रहे हैं या थाली में कम से कम खाना ले रहे हैं। इस दौरान 30 लाख लोगों को ही आपात मानवीय मदद पहुंचाई जा सकी है। श्रीलंका में ज्यादा से ज्यादा लोग अब विदेश जाकर नौकरी की तलाश में हैं, ताकि वे अपने घरवालों का पेट पाल सकें।
प्रधानमंत्री को क्यों देना पड़ा इस्तीफा?
आर्थिक संकट के बीच महिंदा राजपक्षे ने मई में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद रानिल विक्रमसिंघे ने पीएम पद संभाला। विक्रमसिंघे के शासन में ही श्रीलंका के वित्त मंत्री ने कह दिया था कि इस वक्त देश के पास इस्तेमाल करने लायक 2.5 करोड़ डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है। यानी श्रीलंका के पास जून में ही आयातित सामान की कीमत चुकाने की रकम खत्म हो चुकी थी। इस कठिन समय के बीच श्रीलंका ने इस साल 7 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज की भरपाई रोक दी। उसे 2026 तक 25 अरब डॉलर का लोन भी चुकाना है।


श्रीलंका ने इस संकट को खत्म करने के लिए कई देशों से मदद मांगी है।भारत ने उसे आर्थिक संकट शुरू होने के बाद से 4 अरब डॉलर का कर्ज दिया है। श्रीलंका की आखिरी बड़ी उम्मीद आईएमएफ से मदद मिलने पर थी। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी दिए जाने वाले कर्ज के सही इस्तेमाल की और इनके गलत हाथ में न जाने की संभावनाओं को परख लेना चाहता है। ऐसे में श्रीलंका को कर्ज मिलने में लगातार देरी हो रही थी। इस बीच श्रीलंकाई सरकार को चीन, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया से कुछ मदद मिली। आखिरकार राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे को देश में ईंधन की कमी पूरी करने के लिए पश्चिमी देशों के खिलाफ जाकर रूस तक से मदद मांगनी पड़ी है।