उत्तराखण्ड आंदोलन: जरा याद करो कुर्बानी -विक्रम बिष्ट

अखबार: 4 अक्टूबर 1994 । पूरे उत्तराखण्ड में हिंसा और तोड़फोड़ चार व्यक्ति मारे गए, देहरादून, नैनीताल और पौड़ी में कर्फ्यू
अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने से घबराये नेता उत्तराखण्ड आंदोलन को दिशाहीन साबित करने में जुटे थे। केन्द्र और उत्तर प्रदेश में सत्ता की साझेदार कांग्रेस, समाजवादी पार्टी हर हाल में आंदोलन को आरक्षण के खिलाफ सवर्ण प्रतिक्रिया साबित करने की कोशिशें कर रहीं थीं, ताकि आरक्षित वर्ग में अपना आधार पुख्ता किया सके। मुख्य विपक्षी भाजपा को इस बहाने अपना सवर्ण आधार मजबूत होने की आशाएं थीं। पिसना आम उत्तराखण्डियों को ही था।
रामपुर तिराहे पर जो हुआ और दिल्ली रैली स्थल बुराड़ी के मैदान पर जो अराजकता फैलाई गई, एक ही पटकथा का यथासंभव वीभत्स रूपांतरण था।
एक और दो सितंबर 94 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने खटीमा और मसूरी में निहत्थे उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई थीं। 14 जानें चली गईं।
चार सितंबर को प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को आरक्षण विरोधी आंदोलन को बातचीत से निपटाने की सलाह दी। उसी दिन दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कृष्णचंद्र पंत की मौजूदगी में आयोजित एक विचार गोष्ठी में उत्तराखण्ड राज्य के समर्थन में जोरदार हंगामा हुआ था।
मुजफ्फरनगर काण्ड के बाद उत्तराखंड में हिंसा भड़कनी ही थी।
मुख्यधारा राजनीति यही चाहती थी। बांटो और राज करो।
तीन अक्टूबर को चार और लोग शहीद हुए। दिल्ली में कांग्रेस प्रवक्ता वी.एन. गाडगिल ने कहा कि उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार से समर्थन वापसी के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। जारी,,,

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