भौंकुछ- विक्रम बिष्ट :पन्द्रह साल बाद उत्तराखंण्ड।


दृश्य-एक
सरकारी दफ्तर। नौकरी का आवेदक एक पहाड़ी युवा।
अफसर- अच्छा तुम मूल निवासी हो। लेकिन स्थाई निवासी होना जरूरी है। ये मूल-माल तो पुराने जमाने की बात है। अब यह नहीं चल सकता है। स्थाई निवास प्रमाण पत्र है तो ठीक नहीं तो जा सकते हो।
दृश्य- दो
स्वरोजगार दफ्तर। मुम्बई से आया एक उत्साही युवा। वह पहाड़ पर रोजगारपरक निवेश करना चाहता है। जमा पूंजी है थोड़ी-सी जगह की जरूरत है।
अफसर- जमीन तो बांट दी गई है। थोड़ी बची है लेकिन स्थाई निवास प्रमाण पत्र होने पर ही दी जा सकती है।
दृश्य-चार
जिला मुख्यालय स्थित रोजगार दफ्तर। एक शिक्षित लड़की पंजीकरण कराने आई है। दफ्तर की खिड़की पर नोटिस टंगा है- नौकरियां नहीं हैं। कृपया समय बर्बाद न करें।
अन्दर से कुछ आवाजें आ रही हैं। हिम्मत करके लड़की आगे बढ़कर दरवाजा खोलती है। कमरा शराब की पेटियों-बोतलों से भरा है। पिछवाड़े की खिड़की पर लाईन लगी है।
देवभूमि की बेटी उदास गांव लौट रही है।
दृश्य- पांच
देहरादून में मंत्री निवास। युवा घेरा डाले हैं। मांगें, शिकायतें वही हैं, रोजगार, मूल निवास, जल, जंगल, जमीन। जब मंत्री जी के अच्छे दिन थे, अपना निवास छोड़ देहरादून के स्थाई निवासी हो गये। बच्चे विदेश में पढ़ाए। विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन की कृपा से दूसरों की दया के पात्र हैं, समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या कहें, क्या जवाब दें!

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