भौंकुछ -विक्रम बिष्ट :पन्द्रह साल बाद उत्तराखण्ड- तीन


विधानसभा में जोरदार बहस हो रही है। किस बात पर हो रही है, किसी को कुछ पता नहीं है। उनको भी नहीं जो बहसा रहे हैं। दर्शक दीर्घा में बैठे दो युवक भौंचक्के से? अरे, हम तो विधानसभा की बैठक देखने- सुनने आये थे। शायद गलती से किसी हाट- बाजार पहुंच गए हैं।
तभी नीचे कोई जोर से चिल्लाया- बंद करो ये बकवास। इसलिए हमारा उत्तराखण्ड बर्बाद हो रहा है। उत्तराखंड का अपमान बंद करो! यह अकेली आवाज थी जो सभी ने सुनी। दर्शक दीर्घा में बैठे युवकों ने समझी भी। यह उनकी अपने दिल की आवाज थी। इस आवाज में पहाड़ की पीड़ा थी और चुनौती भी।
सत्ता पक्ष की पहली कतार की पहली कुर्सी पर बैठा दबंग नेता उठा और चिल्लाया, खामोश!
तुम्हारा उत्तराखंण्ड मेरे ठेंगे पर। सभा समाप्त। नित्यानंद- नित्यानंद। नारायण-नारायण।
कुछ दिन बाद, विधानसभा चुनाव से पहले।
दिल्ली में पार्टी आलाकमान के प्रभारी का दफ्तर। उत्तराखंड के राजनीतिक भविष्य की तख्ती टिकट खिड़की पर टंगी है। लिखा है-
मिशन २०३७। मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत, अल्मोड़ा के टिकटार्थी अपना समय बर्बाद न करें।
नैनीताल और देहरादून के लिए आंशिक छूट है।
पांच साल बाद। देहरादून और नैनीताल की भी नो एंट्री।

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