
उत्तराखंड की समृद्ध परम्परा लोक-कहावत-औखांण ‘एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ और ‘इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में दर्ज।
टिहरी. उत्तराखंड की माटी में जन्मी अनेक सख्शियतों ने अपनी विशेष उपलब्धियों से देश और दुनिया में देवभूमि का गौरव बढ़ाया है. उत्तराखंडवासियों की यह उपलब्धियां तब और भी खास हो जाती हैं, जब कोई अपनी सेवा के साथ मातृभूमि और मातृभाषा के लिए कुछ अलग हटकर अपनी विद्वता से नए कीर्तिमान स्थापित करता है. ऐसा ही कीर्तिमान स्थापित किया है डॉ. वेणीराम अंथवाल जी ने, जिन्होंने उत्तराखंड की मातृभाषा को विश्व पटल पर प्रस्तुत करने का नया रिकॉर्ड बनाया है.डॉ. वेणीराम अंथवाल (Veniram Anthwal) द्वारा लिखित ‘उत्तराखंण्ड की समृद्ध परम्परा लोक-कहावत ”औखांण” पुस्तक को ‘एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ (Asia Book of Records) और ‘इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ (India Book of Records) में दर्ज किया गया है. डॉ. अंथवाल द्वारा उत्तराखण्ड की मातृभाषा गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी में बोली जाने वाली लोक कहावत (औखाणं) को संकलित कर उनका हिन्दी अर्थ और भावार्थ सहित उनके सृजित होने के आधार तथा औखांण से मिलने वाली शिक्षाओं पर प्रकाश डाला गया है.
जीवन जीने की सुगम शिक्षा औखांण की सृजन परम्परा हमारे लिए धरोहर।
मूल रूप से ग्राम अंथवाल गांव, जनपद टिहरी के निवासी डॉ. अंथवाल वर्तमान में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग जनपद चमोली के इतिहास विभाग में कार्यरत हैं. डॉ. अंथवाल, उत्तराखंड का ‘राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, तथा ‘आजाद हिंद फौज में उत्तराखंड का योगदान’ पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं. इसके साथ ही डॉ. अंथवाल के 40 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. उत्तराखंड के ग्रामीण जीवन में सृजित होने वाली कहावत ”औखांण” वर्तमान में लुप्त प्राय हो रहे हैं तथा यह परंपरा लगभग समाप्त हो रही है, परंतु इनकी प्रासंगिकता वर्तमान में भी यथावत है. उत्तराखंड की मातृभाषा को ‘एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ और ‘इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड’ में स्थान दिलाने पर उत्तराखंड के साहित्य प्रेमियों और राज्य की बोली भाषा के शुभचिंतकों ने डॉ. अंथवाल को बधाई दी है.
डॉ. अंथवाल ने गढ़वाल गढ़वाल विश्वविद्यालय से शोध किया है तथा वे पूर्व में स्वामी राम तीर्थ परिसर बादशाही थौर, टिहरी के इतिहास विभाग में अध्यापन करा चुके हैं. उत्तराखंड की औखांण परम्परा के विषय में डॉ. अंथवाल मानते हैं कि जिस प्रकार से गीता के रूप में भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान की एक अमूल्य धरोहर भविष्य के लिए छोड़ी है, उसी प्रकार से हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए जीवन जीने की सुगम शिक्षा औखांण की सृजन परम्परा के रूप में हमारे लिए धरोहर छोड़ी है. औखांण सृजन मौखिक परंपरा पर आधारित होते हैं, इसलिए यदि समाज की बोल चाल में इनका प्रयोग न हो तो यह अमुल्य निधि समाप्त हो जायेगी. डॉ. अंथवाल की पुस्तक ”औखांण” के इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड तथा एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज होने पर इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड के एडिटर इन चीफ डॉ. विश्वरूप राय चौधरी, वियतनाम बुक ऑफ रिकॉर्ड के चीफ एडिटर ली-त्रान त्रोन, नेपाल बुक ऑफ रिकॉर्ड के चीफ एडिटर डॉ. दीपक चन्द्र सेन, प्रेजिडेंट आफ एशिया बुक रिकॉर्ड, डॉ. मिस. सिल्वा रानी मुथ्यया, डॉ. डीआरएस पोनीजन लिया, इण्डोनेशियन प्रोफेशनल एशोसिएशन के प्रेजिडेंट, गोविन्द दास एडिटर इन चीफ बांग्लादेश बुक ऑफ रिकॉर्ड ने शुभकामनाएं प्रेषित की हैं.
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