जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ! वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं!!
ये पंक्तियां राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखी हैं,आज यह पंक्तियां स्वर्गीय मेजर प्रेम राम डंगवाल जी (ठपतजी 1933-क्मंजी 28ध्01ध्2021) पर सटीक बैठती हैं। मेजर डंगवाल को हमेशा ही अपने गांव से प्यार था और वे चाहते थे कि मेरे गांव के लोग आगे बढ़े और गांव के विकास में प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर किसी न किसी प्रकार से कुछ न कुछ योगदान दे ,अखोड़ी गांव में मथया डंगवालों में स्वर्गीय शालिकराम डंगवाल जी की दो पुत्रियां- बड़ी लीलावती बहुगुणा तथा छोटी कलावती पैन्यूली परिवार में ब्याही हुई थी ,सालिक राम जी जी के 4 पुत्र थे सबसे बड़े पुत्र स्वर्गीय महेश्वर प्रसाद डंगवाल जो कि 20 -21 साल की उम्र में ही स्वर्गवासी हो गए थे दूसरे पुत्र स्वर्गीय कलीराम डंगवाल जी कानूनगो थे, तीसरे पुत्र स्वर्गीय मोतीराम डंगवाल जी पहले अध्यापक और बाद में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में रहे, सबसे छोटे पुत्र मेजर प्रेम राम डंगवाल थे , सभी बच्चों को शालिगराम जी ने मसूरी में पढ़ाया था इनका मसूरी में अपना व्यवसाय था और उस जमाने में यह अखोड़ी के अच्छे पैसे वाले व्यक्ति थे , इनके चारों पुत्र बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे इन चारों के सुपुत्र भी सभी कुशाग्र बुद्धि के हैं और उनके बच्चे भी सभी कुशाग्र बुद्धि के हैं मेजर प्रेम राम डंगवाल ने 1958 में इंडियन आर्मी में कमीशन प्राप्त किया और 1962,1965 और 1971 की लड़ाई में भाग लिया तथा 1978 में सेना से मेजर पद से अवकाश ग्रहण किया, मेजर प्रेम राम डंगवाल जी की धर्मपत्नी चैरा गांव के साहूकार स्वर्गीय जगत राम तिवारी की सबसे बड़ी पुत्री श्रीमती पुष्पा हैं इनके 2 पुत्र श्री राजेंद्र प्रसाद और हरीश डंगवाल तथा तीन पुत्रियां अनु ,जया और सुधा हैं सभी शादीशुदा हैं और अपने- अपने परिवार में सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं श्री राजेंद्र डंगवाल औरंगाबाद में अपना व्यवसाय करते हैं जिसमें मुख्य रुप से टेनिस की कोचिंग और जवनतपेउ टूरिज्म से संबंधित कार्य है, श्री हरीश डंगवाल स्मॉल हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में सीईओ अर्थात डायरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं ,मेजर प्रेम राम डंगवाल ने अवकाश ग्रहण करने के बाद औरंगाबाद महाराष्ट्र में जो कि मुंबई से लगभग 400 किलोमीटर उत्तर -पूर्व में है अपना घर बनवाया और वहीं पर रहने लगे सन् 1990 में मेजर साहब अखोड़ी आए और वहां पर रहने लगे परंतु कुछ ही महीनों बाद वापस औरंगाबाद चले गए 1991 में मैंने अपने गाँव के जो लोग अलग-अलग शहरों में रहते थे उन्हें अखोड़ी 22 डंल 1991में आमंत्रित किया सभी लोगों को मुंबई ,दिल्ली देहरादून ,ऋषिकेश, हरिद्वार मसूरी ,टिहरी, पौड़ी, श्रीनगर ,उत्तरकाशी चिन्यालीसौड़ ,रामनगर, कालागढ़,फरीदाबाद इत्यादि शहरों में लगभग 110 चिट्ठियां भेजी और अपने गांव के लोगों को गांव आमंत्रित किया मई 1991 में काफी लोग गांव आए भी और उस समय क्रिकेट, रस्साकशी ,बैडमिंटन और टेनिस जैसे खेलों का आयोजन किया गया जिसमें मेजर डंगवाल का भी बहुत ही जोशीला योगदान रहा ळप्ब्- ।ाीवतप में भी उनका योगदान रहा उन्होंने छोटे-छोटे बच्चों के साथ बैडमिंटन और टेनिस जैसे खेल खेले और इसके साथ ही जीआईसी ।ाीवतप में 7-8जी पीरियड में 11वीं और 12वीं के बच्चों को अंग्रेजी की भी शिक्षा दी जिससे बच्चों में भी आत्मविश्वास बढ़ा इसके साथ ही साथ मेजर साहब ने गांव में रॉयल इटालियन घास लगवाई जो कि काटने के बाद फिर 1 हफ्ते में काटने के लायक हो जाती थी, मेजर साहब ने वहां पर बुरांश के फूलों का जूस भी निकलवाया और युवा लड़कियोंऔर बहुओं को रोजगार देने की कोशिश की ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके ,और उन्हें प्रत्येक दिन ₹50 प्रति सवालटा अपनी जेब से दिया ताकि यहां की महिलाओं की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके और वह अपनी जरूरी सामान के लिए किसी पर निर्भर न रहें बुरांश का जूस उस समय कुछ प्रचलित तो हुआ परंतु इसमें लागत भी नहीं आयी मेजर साहब को यह काम भी बंद करना पड़ा गांव के लोगों का भी कोई खास सहयोग नहीं मिला इसके बाद मेजर साहब ने फूलों की खेती करनी शुरू की इसके पीछे भी मेजर साहब का मन था कि यहां के फूल दिल्ली -देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश तक जाएंगे परंतु इस कार्य में भी इन्हें सफलता नहीं मिली लेकिन अखोड़ी में उस दौरान चारों तरफ कई किस्म के फूल खिलते थे जिनमें से कुछ तो लोगों ने पहली बार देखे थे इसके अलावा मेजर साहब ने सोंप की पैदावार भी करने की कोशिश की, परंतु इसमें भी उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली ,मेजर साहब ने गांव में फल (फ्रूट प्रिजर्वेशन) का भी लड़कियों को और महिलाओं को प्रशिक्षण दिया परंतु उसमें भी गांव के लोगों ने बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई इसके बाद मेजर साहब ने गांव में जर्सी गाय लाकर दूध का व्यवसाय लोगों से कराना चाहा ताकि लोग दूध जैसे व्यवसाय से जुड़े और खुद के साथ-साथ बाजार में भी दूध उपलब्ध कराएं यहां पर भी मेजर साहब ने बैंक से लोन लिया और ढुंग नदी (गाड )के नीचे कमरा बना कर वहां पर गाय रखी और कई लोगों को रोजगार दिलाया परंतु उस पर भी लोगों ने मन लगाकर काम नहीं किया और वह भी घाटे में चला गया मेजर साहब ने अपनी पेंशन से ₹5000 प्रति माह बैंक का लोन वापस किया धन्य है यह व्यक्ति जिसने गांव के विकास के लिए हर प्रयत्न किए परंतु उन्हें कोई बहुत ज्यादा सहयोग नहीं मिला सबसे ज्यादा सहयोग उन्हें प्रिंसिपल श्री महावीर प्रसाद बडोनी जी से मिला तथा उस समय के अवकाश प्राप्त अध्यापक अध्यापकों जैसे श्री पुरुषोत्तम डंगवाल श्री शेर सिंह मेहरा श्री बालकृष्ण बडोनी एवं अन्य कुछ और लोगों से भी इन्हें थोड़ा बहुत सहयोग मिलता रहा परंतु जिस तरह का उस समय सहयोग चाहिए था वह नहीं मिला और सभी कार्य कुछ ही समय बाद उन्हें बंद करने पड़े जबकि लगभग सभी कार्य गांव के विकास के लिए ही थे और गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी हो इसके लिए थे परंतु बड़ा खेद होता है कि अपनी जेब से पैसा लगाने के बावजूद भी लोगों ने उनके इन प्रयासों को सराहा नहीं है और नहीं उनमें योगदान दिया है मेजर प्रेम राम डंगवाल जी का सबसे बड़ा योगदान कोटी सड़क पुल निर्माण में है क्योंकि यहां पर लोहे का सामान तो आ गया था परंतु पुल नहीं बन पा रहा था इसके लिए मेजर साहब ने च्ॅक् के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और चीफ इंजीनियर के साथ कई बार मीटिंग की और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट टेहरी को भी बार बार मिलकर स्थिति से अवगत कराया और कई बार अपने पैसे खर्च नहीं मानी दो – तीन बार तो उस समय लखनऊ तक भी गए इन सब कार्यों के लिए मेजर डंगवाल ने कभी किसी से न तो एक पैसा लिया और न ही किसी से किसी और इन्हीं का प्रयास रहा कि इन्होंने ही 1991 में सहज- सहयोग नाम से एक आंदोलन चलाया जिसमें बजयाल गांव ,ढूंग,करखेड़ी, चोंरा ,कोट ,अखोड़ी, दुबड़ी बडियारकुड़ा ,खसेती, डांग भेटी ,पाख, दोणी, आदि गांव के लोगों ( विशेष कर प्रधानों तथा भूतपूर्व सैनिकों) ने सड़क पर श्रमदान किया और कोटी से ।ाीवतप सड़क बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया ,उस समय मेजर डंगवाल पट्टी 11 गांव भ्पदकंू के एक सर्वमान्य व्यक्ति थे जिनका सब सम्मान करते थे मेजर प्रेम राम डंगवाल ने 1990 से सन 2010 तक उस क्षेत्र के विकास के लिए अपना सब कुछ न्योछावर किया परंतु हम लोगों ने उन्हें उतना सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार थे ,डंरवत साहब ने अगस्त ,2008 में ।ाीवतप सीट से जिला पंचायत का चुनाव भी लड़ा परन्तु सफलता हाथ नहीं लगी, ।ाीवतप गाँव से उस समय,3 उम्मीदवार हो गये थे श्री वासुदेव नेगी ,श्री प्रेम सिंह कठैत और मेजर साहिब तीनों ही चुनाव हार गये थे, वे चाहते थे कि वहां के बच्चे अच्छी नौकरी करें और ईमानदार और देशभक्त नागरिक बने तथा हर व्यक्ति अपने -अपने गांव के विकास में किसी न किसी प्रकार का योगदान दें ताकि गांव का सर्वांगीण विकास हो ,मेजर डंगवाल ने
अपने जीवन में कभी भी शराब और सिगरेट नहीं पिया वह हमेशा सादा जीवन व्यतीत करते थे इसके अलावा वे चाहते थे कि गांव का हर व्यक्ति शराब के सेवन से दूर रहे व सिगरेट न पिये, जब मेजर साहब इंडियन आर्मी में, 1958 में ऑफिसर बने तो उन्होंने पूरे इलाके में ।ाीवतप गाँव का नाम रोशन किया, मेजर क्ंदहूंस ।ाीवतप गाँव के पहले ऑफिसर थे, आज हम सबको इनके जाने का दुःख है, ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मेजर साहब हमेशा भगवान ’श्री ’के चरणों में रहें और भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें तथा उनके पांचों बच्चों और उनकी पत्नी को भगवान हमेशा खुश रखे और मेजर साहब के अच्छे कार्यों के फल भगवान उनके बच्चों की खुशियों में लगा दे ,ऐसी मेरी प्रभु से प्रार्थना है ,मैं स्वयं आज बहुत आहत हुआ हूं मैंने कई बार मेजर साहब को फोन करने की कोशिश की परंतु फोन पर बात नहीं कर पाते थे लेकिन मैं प्रिंसिपल श्री बडोनी जी से उनके बारे में रोज हालचाल पूछता रहता था मेरी आखरी फोन पर उनसे तब बात हुई थी जब वे (।प्प्डै) -ऋषिकेश में थे मेजर साहब 1991 ,1996 , व 1997 मैं मेरे घर दिल्ली में आए थे और मेरे बच्चों के साथ उस समय भी उन्होंने बैडमिंटन खेला था मेजर साहब जैसा सच्चा- ईमानदार और जीवट इंसान मैंने अपने जीवन में नहीं देखा है ईश्वर से प्रार्थना है कि मेरे गांव में हर बच्चा मेजर साहब जैसा बने और कम से कम युवा पीढ़ी तो मेजर साहब के पद चिन्हों पर चले ताकि हमारा गांव तरक्की करे और मेजर साहब की आत्मा को शांति मिले। ।ाीवतप के हर बच्चे को मेजर साहिब के किये हुये कार्यों को बताना चाहिये ताकि उनके जीवन से कुछ सीख मिल सके, देह त्यागने से पूर्व भी उन्होंने ।ाीवतप के चार लोगों को रोजगार दे रखा था, जो कि किसी बड़े शहर से कम न था, वे त्े 15000, 13000, 12000 व 2000 त्े हर महीने पर उन्होंने अपने घर परिवार पर रखे थे, उन्होंने उनको दोपहर का भोजन भी दिया तथा चंल हमेशा टाइम से पहले ही देते थे ऐसे सच के साथ जीने वाले महान आत्मा को मेरा हृदय की गहराइयों से प्रणाम। साभार – डॉ केदारसिंह ,दिल्ली