दो टूक। विक्रम बिष्ट : न्याय को श्रद्धांजलि!


शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,,,,। सफेद पोश नेताओं के लिए तमाशे से ज्यादा कुछ होंगे!
उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारियों पर अत्याचार के एक भी दोषी को सजा मिली? राज्य बनने के बाद राज भोग के मजे लेने वाले किसी नेता ने पीड़ितों को न्याय दिलाने की कोशिश की?
अपने चुनाव पर करोड़ों रुपए खर्च करने वालों ने क्या न्याय के लिए कुछ संसाधनों का सदुपयोग करने की कोशिश की ?
नहीं! चूंकि इन्होंने खुद कुछ नहीं खोया है। इसलिए दर्द कैसा? आंदोलन के बर्बरतापूर्ण दमन की सीबीआई जांच के आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए थे। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी यहां की सरकारों ने दोषियों को सजा दिलाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। फिर श्रद्धांजलि का नाटक क्यों और किस हक से?
क्या राजनीति में नैतिकता के लिए कोई गुंजाइश शेष नहीं रह गई है?

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