उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं भविष्य के सबसे महत्वपूर्ण सवाल फिसलते जा रहे हैं। हाल तक अपना भू-कानून बहस के केन्द्र में आता लग रहा था। क्या आज उतनी सरगर्मी दिखाई दे रही है?
सबसे पहले राजनीति के मदारी आए और मुफ्तखोरी का झुनझुना बजाकर असली सवालों को कुछ पीछे सरका गये। उत्तराखण्ड की राजनीति के बड़ों को और क्या चाहिए?
मुद्दों पर चर्चा होगी, सवाल पूछे जाएंगे तो जवाब भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को देने पड़ेंगे। राज्य बनने के बाद दोनों दल बारी-बारी से सत्ता सुख भोग रहे हैं।
यह उत्तराखण्ड में ही संभव है कि वर्षों अथक संघर्ष और इसके लिए अपने भविष्य को दांव पर लगाने वाले हजारों युवाओं के मुकाबले राजनीति के चरागाह के नये-नये छुट्टे अधिक विश्वसनीय बताए जा रहे हैं। मजेदार बात यह भी है कि जो कांग्रेस को एक परिवार की पार्टी बताकर रात-दिन कोसते रहते हैं, वे सिर्फ एक आदमी की पार्टी के गुण गा रहे हैं।
प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वायदा वास्तव में सौ टका बेईमान और ठग नेता ही कर सकता है, जो जनता को निपट मूर्ख समझता हो। कहां से आएंगी इतनी नौकरियां?
वह कौन-सा राजनीतिक दल और नेताओं का गिरोह है जो इतनी बिजली पैदा कर रहा है कि देश के एक छोर से दूसरे छोर तक अनंत काल तक मुफ्त बिजली देगा?
जो लोग उत्तराखण्ड की सर्वांगीण उन्नति चाहते हैं उनको अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने होंगे कि जनता को राजनीतिक ठगी के जाल-जंजाल से
मुक्ति मिले। एक दिन ये प्रयास जरूर सफल होंगे।
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चुनाव चर्चा- विक्रम बिष्ट: वादे-इरादे या ठगी
केजरीवाल का दांव-सरकार बनी तो 6 माह में देंगे 1 लाख रोजगार।
हल्द्वानी। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रविवार को उत्तराखंड दौरे पर हैं। अरविंद केजरीवाल अभी हल्द्वानी में हैं। इस दौरान उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पलायन के क्षेत्र में कई घोषणाएं की हैं। दिल्ली सीएम केजरीवाल ने वादा किया है कि उनकी सरकार आने के 6 महीने के अंदर एक लाख सरकारी नौकरियां दी जाएंगी। इसके साथ ही केजरीवाल ने कहा है कि उन्होंने उत्तराखंड के विकास के लिए कई योजनाओं के बारे में सोचा है। उन्होंने दिल्ली की तर्ज पर उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों में मोहल्ला क्लीनिक खोलने की बात कही है। साथ ही पहाड़ों से पलायन रोके और यहां रोजगार पैदा करने का भी ऐलान किया है। इसके साथ ही उन्होंने यहां पर्यटन के क्षेत्र को विकसित किए जाने की जरूरत है। केजरीवाल ने रोजगार को लेकर कहा है उनकी सरकार सरकारी नौकरियां तो देगी ही साथ ही यहां टूरिज्म सेक्टर में रोजगार के असीमित संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा है कि रोजगार और पलायन मंत्रालय बनाया जाएगा। मंत्रालय का काम युवाओं के पलायन रोकना और उत्तराखंड के युवाओं का रिवर्स पलायन करना होगा। उन्होंने उत्तराखंड में बायोटेक इंडस्ट्री शुरू करने का ऐलान किया है। अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का ऐलान किया है। इसके साथ ही आप की सरकार आने पर रोजगार ना मिलने तक युवाओं पर 5 रुपये का बेरोजगारी भत्ता भी दिया जाएगा। इसके अलावा नौकरियों में उत्तराखंड के लोगों को 80% नौकरियों में आरक्षण दिया जाएगा। वहीं, उन्होंने कहा कि राज्य गठन के बाद से 21 सालों में जो राज्य की दुर्दशा हुई है, उसे 21 महीने में सुधार दूंगा. इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उत्तराखंड में रोजगार और पलायन मंत्रालय बनाया जाएगा। उत्तराखंड के बच्चों को जॉब पोर्टल के माध्यम से रोजगार दिया जाएगा।
चुनाव चर्चा -विक्रम बिष्ट-पहली बार मुख्यमंत्री का चेहरा चुनाव मैदान में।
उत्तराखण्ड विधानसभा का आगामी आम चुनाव इस मायने अभूतपूर्व और रोचक होगा कि सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार भाजपा ने भावी मुख्यमंत्री का चेहरा मतदाताओं के सामने रखने का ऐलान किया है।
कहने को आम आदमी पार्टी ने भी मुख्यमंत्री पद का अपना दावेदार घोषित किया है। लेकिन कर्नल खुद के लिए कौन-सा मैदान चुनते हैं,अभी यह भी साफ नहीं है।
२००२ के पहले आम चुनाव के परिणाम और मुख्यमंत्री दोनों अप्रत्याशित थे। जिस उत्तराखण्ड क्रांति दल ने पृथक पर्वतीय राज्य के लिए संघर्ष किया वह चार सीटों पर सिमट गया। उत्तराखण्ड राज्य के लिए सबसे पहले आवाज उठाने वाली भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी का खाता भी नहीं खुला। मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे मुन्ना सिंह चौहान खुद विकास नगर में चित हो गये। उनकी उत्तराखण्ड जनवादी पार्टी क्षेत्रीय राजनीति की जड़ों में मट्ठा डालकर अंतर्ध्यान हो गई।
केन्द्र में भाजपा नीत सरकार के कार्यकाल में उत्तरांचल नाम से राज्य बना। आखिरी दिनों में भगतसिंह कोश्यारी जैसे नेता को सत्ता सौंपने के बावजूद भाजपा सत्ता से बाहर हो गई। नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ी होती तो शायद भाजपा दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाती। स्वामी जी और उनके वित्त मंत्री डॉ निशंक सहित बड़े-बड़े भाजपाई चुनाव मैदान में धराशाई हो गए।
उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की राह में कदम-कदम पर बाधा बनती रही कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने का मौका मिला।
५२-५२ गज के छप्पन आंदोलनकारी संगठन खड़े करने वाले हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस ने वह चुनाव लड़ा था। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के घोर विरोधी नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बन गये। अब तक पांच साल के लिए अकेले।
२००७ का चुनाव भाजपा ने कोश्यारी के नेतृत्व में लड़ा और सत्ता के करीब पहुंच गई। उक्रांद के कुछ बड़े नेता कांग्रेस के पक्ष में थे। लेकिन नरेंद्र नगर के उसके विधायक ओमगोपाल की जिद के चलते भाजपा से सशर्त गठबंधन हुआ। जनरल खण्डूरी मुख्यमंत्री बने। फिर निशंक। फिर खण्डूरी। खण्डूरी है जरूरी के नारे के साथ भाजपा २०१२ के चुनाव मैदान में उतरी। भाजपा संख्या बल में कांग्रेस के निकट तो पहुंच गई, लेकिन कोटद्वार के मतदाताओं ने खण्डूरी जी को जरूरी नहीं माना।
२०१७ में मुख्यमंत्री हरीश रावत दो सीटों से लड़े, अपने लेफ्टिनेंट सहित लुढ़क गये। जाहिर है सत्ता की दूसरी दावेदार कांग्रेस सोनिया, राहुल के सुपरिचित चेहरों पर चुनाव लड़ेगी।
बचा उक्रांद, २००२ का आंकड़ा पार कर ले तो कम से कम उत्तराखण्ड के मुद्दे तो जीवित रहेंगे।
चुनाव धामी के चेहरे पर लड़ेगी भाजपा और अगले सीएम भी धामी होंगे-प्रह्लाद जोशी।
देहरादून। जहां कांग्रेस संगठन परिवर्तन के बाद भी अंतर्कलह से जूझ रही है तो वहीं उत्तराखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर चल रही असमंजस की स्थिति को केंद्रीय चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी ने साफ कर दिया है। जोशी ने उत्तराखंड से जाते-जाते साफ शब्दों में कह दिया कि राज्य के विधानसभा चुनाव पुष्कर धामी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि इस बात पर किसी को कोई शंका नहीं होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि बीजेपी के केंद्रीय चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी, चुनाव सह प्रभारी सरदार आरपी सिंह और सह प्रभारी सांसद लॉकेट चटर्जी दो दिवसीय दौरे पर देहरादून थे। दो दिनों तक उन्होंने बैक टु बैक बैठकों के दौर चलाए और सरकार, संगठन व कार्यकर्ताओं की नब्ज को टटोला।
जोशी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि मेरा काम सिर्फ को ऑर्डिनेशन का है। सब नेताओं को एकजुट होकर पार्टी के कामों को आगे बढ़ाना है। जोशी ने पार्टी नेताओं से अपील की कि पार्टी की ओर से दिए गए कामों को पूरी ईमानदारी के साथ करें।
अपने दौरे के दौरान जोशी ने कहा कि युवा सीएम पुष्कर धामी के नेतृत्व में 60 सीटों पर जीत का लख्य रखा है और इसे हर हाल में हासिल करना है। उन्होंने कहा कि इसे हासिल करना तभी संभव है जब सभी एकजुट होकर कार्य करेंगे और सरकार की योजनाओं को लोगों तक पहुंचाएंगे. साथ ही लोगों को उनका लाभ भी दिलवाएंगे। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि विकास के लिए केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होना भी बहुत जरूरी है।
सीएम पुष्कर धामी ने इस दौरान नेताओं को आश्वास्त किया कि सरकार जो भी घोषणाएं कर रही है, वो पूरी की जाएंगी। उन्होंने कहा कि विपक्ष 24 हजार नौकरियां देने को लेकर जनता के बीच भ्रम फैला रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मैंने स्पष्ट कहा था कि हम भर्ती प्रक्रिया शुरू कर देंगे। सीएम ने कहा कि हम करीब छह हजार नौकरियों का प्रपोजल भेज चुके हैं और अगले दो महीने में छह हजार और नौकरियों की विज्ञप्ति जारी कर दी जाएगी।
चुनाव चर्चा -विक्रम बिष्ट -विधायक होंगे मुख्य मुद्दा
डेढ़ – पौने दो सौ दिनों
के भीतर उत्तराखण्ड की नई सरकार बन जाएगी। अब तक राज्य में कुल कितनी सरकारें बनी हैं, गणना कर लीजिए।
भाजपा ने साफ कर दिया है कि चुनाव बाद उसकी सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी ही होंगे। कांग्रेस में सूत-कपास की आशाओं के साथ मुख्यमंत्री पद के लिए लठ्ठम-लठ जारी है।
मुंगेरी-मुण्डा सपने देखने की मनाही नहीं है, यह हमारे लोकतंत्र का अच्छा मजाक रहा है।
2017 के चुनाव में जनता ने भाजपा को जितने वोट दिए पार्टी के बड़े-बड़े ज्ञानियों ने भी कल्पना नहीं की थी। करते तो भीतरघात की कोशिशें नहीं होतीं।
उससे पूर्व कांग्रेस में हुई बगावत और न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद सत्ता में वापसी के दौरान हरीश रावत ने कहा था कि अभी इन (विरोधियों) को और चार-पांच साल मुझको झेलना पड़ेगा। फिलहाल रावत जी को अपने उगाए कांटों को झेलना पड़ रहा है।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी राहत यह थी कि उत्तराखण्ड क्रांति दल ने अपने मुद्दों के लिए सड़कों पर संघर्ष की राह न अपना कर वास्तविक विपक्ष की भूमिका से परहेज़ रखा।
लेकिन आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर और कुछ हद तक देहरादून जिलों में बसपा और सपा के जो मतदाता कांग्रेस की ओर रुख कर सकते थे वे आप की तरफ जा सकते हैं। फिलहाल आप भाजपा के लिए एक बड़ी राहत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू तो है ही, योगी आदित्यनाथ भाजपा के लिए तुरुप का पत्ता हैं। पार्टी की तीरथ गलती से उसका आधार तेजी से खिसकने लगा था, धामी ने उसे थाम लिया है। हाल में मुख्यमंत्री के फैसलों का सकारात्मक संदेश गया है।
चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा वर्तमान विधायक होंगे, यह तय है।
भौंकुछ। विक्रम बिष्ट – देवभूमि उत्तराखंड: हार्स ट्रेडिंग से ढेंचा-ढेंचा तक, आगे,,
पांच-छह साल पहले मर्यादा पुरुषोत्तम राम और सत्यव्रती महात्मा गांधी के अनुयायियों के बीच घोड़ा व्यापार के राजनीतिक घमासान से उत्तराखंड ने जबरदस्त ख्याति प्राप्त की थी।
खास बात यह थी कि दोनों यानी भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे पर अपने घोड़े खरीदने के आरोप लगा रही थीं।
राजनीति के इस कारोबार की खासियत यही है कि इसमें जिसके बिकते हैं उसकी अहमियत बेचारे जैसी होती है। कीमत और लाभ की वास्तविक जानकारी सिर्फ बिकने और खरीदने वाले को होती है।
इनकी प्यारी- दुलारी, देवतुल्य जनता तमाशबीन है। पांच साल में एक बार जब उसकी बारी आती है तो कुशल मदारी का जादू सिर चढ़कर बोलता है।
इधर भाजपा प्रतिपक्ष में तोड़फोड़ कर अपना कुनबा बढ़ाने में लगी है। बीच में ढेंचा आ गया। दूसरी तरफ कांग्रेस मजबूत होने की प्रक्रिया में है। समस्या डार्विन के योग्यतम की उत्तरजीविता के सिद्धांत को पूरी मान्यता न मिलने की है। पार्टी को मजबूत करने में ८० प्रतिशत की हिस्सेदारी निभाने वाले को पूरी तवज्जो दी गई है तो २० प्रतिशत के हिस्सेदार की उपेक्षा क्यों ? बात तो वाजिब है।
समझ में नहीं आता कि अवशेष नौ विधायकों सहित बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं का कांग्रेस के अंगने में क्या काम है ? भाजपा का लक्ष्य साठ पार है ! जनता ने मतदान के दिन गड़बड़ी की तो सरकार बनाने के लिए इस बार- उर्र-उर्र, फुर्र-फुर्र,,
चुनावी चर्चा- विक्रम बिष्ट-खासा रोचक है टिहरी का लोकतांत्रिक इतिहास टिहरी की राजशाही और जनक्रांति पर बहुत कुछ लिखा गया है। काफी कुछ नहीं भी!
खासा रोचक है टिहरी का लोकतांत्रिक इतिहास
टिहरी की राजशाही और जनक्रांति पर बहुत कुछ लिखा गया है। काफी कुछ नहीं भी!
तार-
तख्ता पलट के बाद १५ जनवरी १९४८ को देहरादून से एसडीओ और पुलिस सुपरिटेंडेंट ने दल-बल के साथ टिहरी पहुंच कर भारत सरकार की ओर से राज्य-काज की कमान संभाली। १६ फरवरी को। अंतरिम सरकार का गठन किया गया।
१२ अगस्त ४८ को टिहरी में वयस्क मताधिकार के आधार पर विधानसभा के चुनाव हुए। प्रजामण्डल के २४,
दो आजाद उम्मीदवारों के साथ प्रजा हितैषिणी के पांच सदस्य निर्वाचित हुए। सभा की स्थापना पूर्व में राजा ने की थी।
१८ मई ४९ को महाराजा मानवेंद्र शाह ने टिहरी को संयुक्त प्रांत (यूपी) में विलीनीकरण पर हस्ताक्षर कर दिए।
एक अगस्त को भारत सरकार ने विलय की घोषणा कर दी।
भारत में वयस्क मताधिकार से अक्टूबर १९५१ से फरवरी ५२ तक पहले आम चुनाव सम्पन्न हुआ। आजादी आंदोलन की अगुवाई करने वाली कांग्रेस को पूरे देश में प्रचण्ड बहुमत मिला। टिहरी में राज परिवार ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया। राजमाता कमलेन्दुमति शाह लोकसभा और उनके उम्मीदवार लखनऊ विधानसभा पंहुच गये। यानी टिहरी के पहले आम चुनाव के लगभग सवा तीन साल में ही राज परिवार की संसदीय राजनीति में धूम-धाम से वापसी हो गई।
मजबूरी चाहे जिसकी रही हो १९५७ के चुनाव में पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह कांग्रेस के टिकट पर टिहरी से लोकसभा सदस्य चुने गए। वह लगातार तीन चुनाव जीते थे।
सन् ५७ और ६२ में देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से शहीद श्रीदेव सुमन की पत्नी विनय लक्ष्मी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुईं।
पांच साल बाद हुए चुनाव में देवप्रयाग के कांग्रेसियों ने विद्रोह कर दिया। इन्द्रमणि बडोनी निर्दलीय विधायक चुने गए। टिहरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के त्रेपन सिंह नेगी दूसरी बार।
विधानसभा के चुनावों में लगातार चार बार जिले से किसी एक पार्टी के उम्मीदवार चुनाव नहीं जीते। कांग्रेस के विभाजन के बाद १९६९ में हुए मध्यावधि चुनाव में टिहरी से भाकपा के गोविंद सिंह नेगी और देवप्रयाग से कांग्रेस संगठन ( o) के बडोनी विधायक बने।
१९७४ में टिहरी से कामरेड नेगी दूसरी बार और कांग्रेस इ के गोविंद प्रसाद गैरोला देवप्रयाग से निर्वाचित हुए। सन् ७७ के चुनाव में जनता पार्टी के त्रेपन सिंह नेगी लोकसभा चुनाव जीते लेकिन विधानसभा चुनाव पर उस लहर का कोई असर नहीं हुआ। नेगी टिहरी से लगातार तीसरी बार और इन्द्रमणि बडोनी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में देवप्रयाग से विजयी हुए।
१९४८ में वयस्क मताधिकार के आधार पर देश ही नहीं यूरोप और अमेरिका को पीछे छोड़ देने वाली टिहरी की राजनीति आज,,,,,
चुनाव पर चर्चा- विक्रम बिष्ट- धनोल्टी और पुरोला पर भाजपा का धावा।
उत्तराखण्ड विधानसभा के 2017 में हुए आम चुनाव में पुरोला और धनोल्टी ने मोदी रथ को रोक लिया था। संयोग कहें या कुछ और भाजपा ने आगामी चुनावी रण के लिए विपक्षी खेमों पर पहला सीधा और मर्मांतक धावा यहीं मारा है।
विधानसभा में पुरोला के लिए सीट नंबर एक आबंटित है। धनोल्टी का नंबर १४ है। भाजपा का विजय रथ टिहरी, उत्तरकाशी की १२ सीटों पर विरोधियों की धज्जियां उड़ाते हुए आगे बढ़ा लेकिन इन दो छोरों पर पस्त हो गया। पुरोला से कांग्रेस के राजकुमार जीते, वह पहले भाजपा में थे। उत्तराखण्ड आंदोलनकारी और उक्रांद से दो बार विधायक रहे प्रीतम पंवार धनोल्टी से निर्दलीय विधायक चुने गए थे।
संदेश दो टूक है। कांग्रेस ही नहीं समूचे विपक्ष को नेस्तनाबूद करना, ताकि न रहे बांस न बजेगी बांसुरी। वैसे कांग्रेस सिर्फ चुनावी दुश्मन है। नीतियों के मामले में दोनों मौसेरे भाई हैं।
इधर उत्तराखण्ड के असली मुद्दों पर पढ़ी-लिखी नौजवान पीढ़ी जिस तरह मुखर होकर सामने आ रही है, भाजपा और कांग्रेस के लिए देर-सवेर असली चुनौती यही हो सकती है।
फिलहाल टिहरी संसदीय क्षेत्र की एक मात्र चकराता विधानसभा सीट विपक्ष के पास रह गई है। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह यहां से विधायक हैं। जाहिर है वहां चुनावी घेरेबंदी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
भौंकुछ -विक्रम बिष्ट- बाड़े खुले हैं
हाहाकार मचा कर बंदर कूद पड़ा लंका के अंदर। जैसे-जैसे उत्तराखण्ड विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, उत्तराखण्ड की राजनीति में यह कूद-फांद तेज हो रही है। ठंड के मौसम में चुनावी तापमान चरम पर होगा । समझदार लोग बेसब्री से इंतजार करें।
कौन किस पाले में होगा उसको भी नहीं मालूम जो फांदने की उचित व्यवस्था के इंतजार में व्याकुल है। तय तो मदारी को करना है। जाहिर है मदारी दिल्ली में बैठे-बैठे खेलों की पटकथा लिख रहे हैं।
पटकथा में यह देखा जाएगा कि कौन अच्छे से नाचकर जनता को लुभा सकता है। जो खूब लुभाएग प्यारी जनता मतदान के दिन उस्तरा उसी को सौंपेगी। जी नहीं यह उछल-कूद उस उस्तरे से खुद को लहूलुहान करने के लिए नहीं हो रही है। यह पुण्य कार्य तो बाकी पांच साल के लिए जनता जनार्दन के मत्थे रहेगा।
फिलहाल तो अच्छे नचनिया की ठोक-पीठ तलाश है। अपने बाड़े की फसल इस मौके काम न आए तो किस मर्ज की दवा ? अपने बाड़े खुले हैं !
सेंधमारी से कांग्रेस में मचा हड़कंप, प्रदेश नेतृत्व दिल्ली तलब।
देहरादून। आगामी चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने संगठन में बड़ा फेरबदल का चुनाव की तैयारियां शुरू ही की थी कि कांग्रेस के सिर पर राजनीतिक पहाड़ टूटने शुरू हो गए। भाजपा की सेंधमारी से कांग्रेस में हड़कंप मच गया है। उत्तरकाशी के पुरोला विधायक राजकुमार के भाजपा में शामिल होने के बाद अब कांग्रेस की चिंताएं बढ़ गईं हैं। अब कांग्रेस चुनाव की तैयारियां छोड़ आपदा प्रबंधन में जुट गयी है। कहीं भाजपा सेंधमारी के और झटके न दे, इसके लिए सोमवार की सुबह उत्तराखंड कांग्रेस के कुछ बड़े नेता दिल्ली के लिए रवाना हो गए हैं और कुछ शाम को रवाना होने वाले हैं। सूत्रों के मुताबिक, उत्तराखंड के नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल दिल्ली पहुंच गए हैं। ऐसी सूचना है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी शाम को दिल्ली रवाना होंगे। वहीं, इन नेताओं की अचानक दिल्ली रवानगी को विधायक राजकुमार के भाजपा में शामिल हो जाने और कुछ अन्य के जाने की आशंका से जोड़कर देखा जा रहा है।