भौंकुछ – विक्रम बिष्ट:
हर,,हर,, दिदा’
आप मानो चाहे ना मानो, उत्तराखंड की राजनीति में यदि रस है तो हरदा और हरक सिंह भैजी की बदौलत है।
भारतीय काव्य शास्त्र में नौ रस हैं। इन दोनों में सभी के अलावा भी कई समरस हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि दोनों अपनी-अपनी जगह वरिष्ठ हैं। हरीश रावत १९८० में डाक्टर मुरली मनोहर जोशी को हराकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रविष्ठ हुए। हरक सिंह उत्तर प्रदेश की पहली भाजपा सरकार में मंत्री।
हाल फिलहाल उत्तराखंड की राजनीति इनकी जुगलबंदी के इर्द-गिर्द घूम रही है। वीर रस कब शांत रस के साथ रौद्र रूप का श्रिंगार कर अद्भुत वीभत्स हास्य में प्रकट हो जाए, बड़े-बड़े राजनीतिक ज्योतिषी नहीं बता पाते हैं।
इधर दो विधायकों को अपने पाले में लाकर भाजपा के तीस मारखां चौड़े हो रहे थे। उधर कांग्रेस ने सीधे सपुत्र मंत्री को समेट कर नहले पर दहला नहीं सीधे हुकुम के इक्के के साथ गद्दी अपनी पक्की
घोषित कर दी।
बीच में हरदा और हरक भैजी के श्री मुखों से वीर, करुणा, रौद्र, श्रृंगार सहित सभी रस प्रवाहित हुए और भाजपा कांग्रेस फुस्स। बहुत कोशिशें की थीं, थैली मीडिया के साथ बाक़ी को भी घेरघार कर मेले सजाने की।
इधर से एक सुर निकला उधर से भी बजा। रस कौन-कौन सा था, सुर्खियां तो हरदा और हरक सिंह बटोर ले उड़े। जय बाबा केदारनाथ।
Category: सियासत
भौंकुछ- विक्रम बिष्ट : हर,,हर,, दिदा’
भाजपा को झटका- मंत्री यशपाल आर्य और उनके बेटे विधायक संजीव आर्य कांग्रेस में शामिल।
दिल्ली। उत्तराखंड प्रदेश में चुनाव से पहले बीजेपी को आज बड़ा झटका लगा है। सोमवार को सरकार में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य अपने विधायक बेटे संजीव आर्य सहित कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। 2017 में यशपाल आर्य कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। लगातार यशपाल आर्य बीजेपी संगठन और सरकार से नाराज़ चल रहे थे। सोमवार को उन्होंने घर वापसी करते हुए दिल्ली में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित पार्टी के पदाधिकारियों ने यशपाल आर्य को कांग्रेस में शामिल करवाया। इसके बाद 2017 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए बागियों के भी कांग्रेस में जाने की चर्चाएं तेज हो गई हैं।
चुनाव चर्चा- विक्रम बिष्ट-घनसाली: पार्टी टिकटों के लिए जोर आजमाइश।
पिछले विधानसभा चुनाव में घनसाली सीट पर भाजपा और कांग्रेस में बगावत हुई थी। इस बार कहीं ज्यादा संभावनाएं हैं। दोनों दलों या किसी एक में बगावत नहीं होती तो भी चुनाव परिणाम पर फर्क नहीं पड़ता। सिर्फ जीत के अंतर में घट-बढ़ हो सकती थी।
भाजपा प्रत्याशी शक्ति लाल शाह को 22103 मत मिले थे। पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़े प्रेमलाल त्रिकोटिया को 3062, कांग्रेस के भीम लाल आर्य के हिस्से मात्र 4963 मत आए थे। जबकि कांग्रेस के बागी धनी लाल शाह 10450 मत हासिल कर दूसरे नंबर पर रहे थे। शेष चार उम्मीदवारों को 3221 मत मिले थे। यानी भाजपा को अन्य सभी उम्मीदवारों को मिले मतों से ज्यादा लोगों ने पसंद किया था।
चुनाव में भाजपा को प्रचण्ड बहुमत को मोदी लहर का परिणाम माना गया था। लेकिन उस दौरान के विधायकों के काम का मतदाताओं ने बिल्कुल मूल्यांकन नहीं किया, ऐसा नहीं माना जा सकता है। घनसाली सहित अधिकांश क्षेत्रों में
तत्कालीन विधायकों के प्रति मतदाताओं के विश्वास या अविश्वास को जीत-हार के अंतर से समझा जा सकता है।
इस बार विधायक शक्ति लाल के अलावा दर्शन लाल, सोहनलाल खण्डेलवाल भाजपा टिकट के दावेदार हैं।
धनीलाल शाह, भीम लाल आर्य और दिनेश लाल कांग्रेस के टिकटार्थी हैं। उक्रांद प्रत्याशी को सबसे कम मत मिले थे। इस बार घनसाली में उक्रांद खासा सक्रिय है। उसके टिकट के लिए भी तीन-चार दावेदार हैं। आप भी चुनाव लड़ेंगी।
घनसाली विधानसभा क्षेत्र भिलंगना ब्लाक तक सिमटा है, यानी एक विधायक एक ब्लाक प्रमुख। दो एसडीएम एक बीडिओ।
दस न्याय पंचायतें। सभी पंचायतों से कम से कम एक -एक संभावित उम्मीदवार।